घिसे-पिटे रीति-रिवाजों की आग
अमानवीय प्रथाओं की आग
नफरतों की आग
लडाई-झगड़ों- युद्धों की आग
अहंकार की आग संदेह की आग
ईर्ष्या की आग स्वार्थ की आग
ओछेपन की आग
और हवस की आग जलाती रही है
तुम्हें जलाती ही रहेगी जब तक कि तुम
खुद ना बन जाओ आग!
कुछ जिद्दी अपशिष्ट कुछ घोर पाप
आग की प्रचंडता में ही जलते हैं
धरती के घोर पापों जिद्दी अपशिष्टों को
जलाने के लिए अब तो
आग बन जाओ तुम..धरती माँ... !