जगत तरैयां भोर की, सहजो ठहरत नाहिं।
जैसे मोती ओस की, पानी अंजुली माहिं।।
दो शून्यों के बीच में जीवन की यह थोड़ी सी लहर...।
इस लहर को तुम सच मान लेते हो। कभी संदेह नहीं करते।
ये जो थोड़ी देर के लिए सपने का संसार है, संदेह ही करना हो इस पर करो। और आश्चर्य है कि लोग इस पर तो संदेह नहीं करते, शाश्वत पर संदेह करते हैं। और सब लहरों के पीछे छिपा हुआ जो अस्तित्व है--इसे परमात्मा कहो, आत्मा कहो, मोक्ष कहो--उस पर तुम्हें संदेह आता है।
जरा संसार पर संदेह करके देखो; और तुम पाओगे कि सपने में और इस जीवन में कोई भेद नहीं है।