योग्य पुरुष के लिये साधारण वस्तु भी आभूषणस्वरूप हो जाता है, जबकि नीच पुरूष के लिये सुन्दर वस्तु भी दोषरूप बन जाता है । समुद्रमंथन से निकला हुआ अमृत राहू के लिये प्राणघातक बन गया जबकी उसी समुद्रमंथन से निकला हुआ प्राणघातक कालकूट विष भी भगवान शंकर के लिये आभूषण बन गया।