सोना सज्जन साधू जन
टूट जुड़े सौ बार,
दुर्जन कुम्भ कुम्हार के
एइके ढाका दरार।।
भावार्थः- सज्जन, साधुजन एवं स्वर्ण.. ये एक समान होते है, ये कितनी ही बार टूटे या जुड़े अथवा कैसी भी परिस्थिति होने पर इनका मूल्य, गुण अर्थात महत्व कम नही होता। किन्तु दुर्जन व्यक्ति, कुम्हार द्वारा बनाये गए मिट्टी के बर्तन जैसा होता है, जो भंगुर होता है और ठोकर लगने पर टूट जाता है और उसका कोई मूल्य नही रहता।
ॐ नमो नारायणाय