प्राणी हँसते हुए कर्म करता है और रोते हुए उसका फल भोगता है।यहाँ कोई किसीको न सुख देनेवाला है और न ही किसीको दुःख देने वाला है।
प्राणीको अपने कर्मो से ही दुःख होता है और उसी कर्म से सुख भी होता है।इसलिये कर्मकी पूजा होती है, और सब कुछ कर्ममे ही स्थित है।।