निर्मल चैतन्य's Album: Wall Photos

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।।।।।।।वत्स उवाच।।।।।।।।

हसता क्रियते कर्म रुदता परिभुज्यते।
दुःखदाता न कोSप्यस्ति सुखदाता न कश्चन।।१३।।

स्वकर्मणा भवेद्दुःखं सुखं तेनैव कर्मणा।
तस्माच्च पूज्यते कर्म सर्वं कर्मणि संस्थितम्।।१५।।

प्राणी हँसते हुए कर्म करता है और रोते हुए उसका फल भोगता है।यहाँ कोई किसीको न सुख देनेवाला है और न ही किसीको दुःख देने वाला है।
प्राणीको अपने कर्मो से ही दुःख होता है और उसी कर्म से सुख भी होता है।इसलिये कर्मकी पूजा होती है, और सब कुछ कर्ममे ही स्थित है।।

【शिवपुराण कोटिरुद्रसंहिता अध्याय ६】

।।ॐ नमो नारायणाय।।
।।ॐ नमः शिवाय।।