बीएचयू की जमीन , महामना और#दानवीर महाराजा काशी नरेश ।
काशी नरेश और मालवीय जी गंगा जी के किनारे घाट पर परिचर्चा में मग्न थे उसी मे मालवीय जी ने बनारस में एक भव्य विश्वविद्यालय होने की कल्पना के बात की तो राजा साहब ने कहा कि चलिए हम ने जमीन दिया मालवीय जी ने कहा कितना जमीन देंगे, राजा साहब ने कहा जितना 1 दिन में सूर्य उदय का उसे अस्त् होने तक आप पैदल चलोगे उतनी जमीन विद्यालय के लिए मै दान दे दूंगा ।
मालवीय जी ठहरे पंडित, तुरंत काशी नरेश के हाथ में गंगाजल और तुलसी के साथ काशी नरेश जी से संकल्प करवा लिए और दूसरे दिन सवेरे वह विश्वविद्यालय की जमीन के लिए पैदल चल निकले पीछे पीछे राजा साहब का एक सेवक डलिया में चुनना लिए पंडित जी जैसे-जैसे चलते पीछे से वह चुनना उसी रास्ते पर डालता जाता पंडित जी जहां से शुरू किए थे शाम सूर्य अस्त् होने के पूर्व अपने यात्रा पूरी कर वर्तमान में जो BHU का स्वरूप देखते हैं वह जमीन मालवीय जी को दान में मिलने से और जगह जगह के महाराजाओं ने अपने अपने इच्छा अनुसार दान स्वरूप भवनों का निर्माण अनुदान देते चले गए काशी हिंदू विश्वविद्यालय बनता चला गया ।