आज फेसबुक पर विचरण करते हुए अचानक ये फोटो हाथ लगी। अगर बख्तियार खिलजी ने विश्व प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय तोड़ी ना होती तो आज बिहार का यह भव्य विश्वविद्यालय कुछ इसी बुलंदी के साथ खड़ा मिलता ।
इस पुरातन विश्वविद्यालय की यही गलती थी की यहां आचार्य श्री राहुल शीलभद्र जैसे विख्यात वैद्य रहते थे जिन्होंने बख्तियार खिलजी की बीमारी चुटकियों में दूर कर दिया था। विश्वविद्यालय अपने समय में ज्ञान और विज्ञान का केंद्र था जहां एक समय में 10000 विद्यार्थी और 2000 शिक्षक रहते थे। इस विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी इतनी समृद्ध थी कि जब बख्तियार खिलजी ने इसे जलाया तो 3 महीने तक यह लगातार धू धू कर जलते रहा। हजारों विद्यार्थी और शिक्षक भी उस आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी के हाथों इस हमले मे मारे गए थे।
लेकिन तमाम ज्ञान और विज्ञान से परिपूर्ण रहने के बावजूद यह विश्वविद्यालय एक सनकी और दुष्ट आताताई के हाथों नष्ट हो गया। यह एक सबक है कि आप कितनी भी ज्ञान अर्जित कर ले, कितनी भी वैभव, कला और विलासिता से परिपूर्ण हों पर अगर आप सुरक्षा से लापरवाह रहेंगे तो आप का यही हश्र होना तय है।
आज ना तो हम इतिहास में वापस जा सकते हैं और ना ही इस गौरवशाली भव्य विश्वविद्यालय की पुनर्स्थापना सकते हैं, लेकिन जो हम कर सकते हैं वह भी वर्तमान राजनैतिक तुष्टीकरण के कारण नहीं कर पा रहे हैं। कभी कोलकाता से कोई आवश्यक काम करते हुए या गुवाहाटी से मां कामाख्या का दर्शन करते हुए वापस पटना आएं तो बख्तियारपुर स्टेशन जो कि उसी आतताई के नाम पर जिसने आपका विश्वविद्यालय जल दिया था उसी बख्तियार पुर स्टेशन पर इस राजनीतिक व्यवस्था को श्रद्धांजलि जरूर देते आए।