प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नियुक्त DRDO साइंटिस्ट की प्रेरक कथा।
प्रताप की आयु 21 वर्ष है, वे महीने में 28 दिन विदेश यात्रा करते हैं। फ्रांस ने उन्हें अपने संगठनों में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया था, जिसके लिए उन्हें 16 लाख रुपये के मासिक वेतन, 5 BHK का घर तथा ढाई करोड़ प्रदान करने की पेशकश की। परंतु उन्होंने साफ मना कर दिया।
पीएम मोदी ने उन्हें उपयुक्त पुरस्कार से सम्मानित किया तथा डीआरडीओ को उनमें छुपी संभावनाओं को खोजने के लिए कहा।
आइए जानते हैं कि कर्नाटक के इस लड़के ने आखिर ऐसा क्या किया है?
भाग 1
उनका जन्म मैसूर कर्नाटक के पास एक दूरस्थ गाँव कादिकुडी में हुआ था। उनके पिता एक किसान के रूप में 2000 रुपये कमाते थे। प्रताप की बचपन से ही इलेक्ट्रॉनिक्स में रुचि थी,12वीं +2 का अध्ययन करते समय उन्होंने विभिन्न वेबसाइटों जैसे एविएशन, स्पेस, रोल्स रॉयस कार, बोइंग 777 इत्यादि से पास के एक साइबर कैफे से सविस्तार ज्ञान प्राप्त किया।
उन्होंने अपने बटलर अंग्रेजी में दुनिया भर के वैज्ञानिकों को काम के प्रति रुचि के बारे में कई ईमेल भेजे किंतु सब व्यर्थ गया। वह Engg में शामिल होना चाहते थे परंतु वित्तीय समस्याओं के कारण वह बीएससी (भौतिकी) में शामिल हो गए और फिर उसे पूरा भी नहीं कर पाए। हॉस्टल की फीस नहीं भरने के कारण उन्हें हॉस्टल से बाहर निकाल दिया गया। वे मैसूर बस स्टैंड में सोते थे और सार्वजनिक शौचालय में अपने कपड़े धोते थे।
उन्होंने अपने दम पर कंप्यूटर भाषा जैसे CC ++ JavaCore और Python सीखा। उन्होंने eWaste के माध्यम से Drone के बारे में जाना। 80 प्रयासों के बाद अंततः उन्होंने एक Advanced Drone विकसित करने में सफलता हासिल की।
भाग 2
वे ड्रोन मॉडल प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए अनारक्षित डिब्बे में यात्रा कर आईआईटी दिल्ली गए। उन्होंने वहाँ द्वितीय पुरस्कार जीता। उन्हें जापान में एक प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए कहा गया।
जापान में प्रतियोगीता में भाग लेने के लिए उन्हें चेन्नई कॉलेज के एक अकादमिक प्रोफेसर से अपनी थीसिस को मंजूर कराना था अतः वे पहली बार चेन्नई गए और बड़ी कठिनाइयों के बाद प्रोफेसर ने उन्हें कुछ टिप्पणियों के साथ मंजूरी दे दी कि वे पढ़ाई पूरी न होने के कारण इसे लिखने के लिए योग्य नहीं है।
प्रताप को जापान जाने के लिए 60000 रुपये की आवश्यकता थी, मैसूर के एक परोपकारी व्यक्ति ने अपनी माँ के मंगलसूत्र को बेचकर उनके फ्लाइट टिकट तथा शेष धन को प्रायोजित किया।
किसी तरह जब वे वहां पहुंचे तो उनके पास केवल 1400 रुपये थे। उन्होंने बुलेट ट्रेन नहीं की क्योंकि यह बहुत महंगी थी इसलिए वे अंतिम स्टेशन तक पहुंचने के लिए सामान के साथ 16 अलग-अलग ट्रेनों को बदलकर सामान्य ट्रेन से पहुंचे। वे अंततः अपने अंतिम गंतव्य तक पहुंचने के लिए समान सहित और 8 किमी पैदल चले।
उन्होंने प्रदर्शन में भाग लिया, जहाँ 127 राष्ट्र भाग ले रहे थे। परिणामों को क्रमबद्ध तरीके से घोषित किया गया और अंतत: उन्हें शीर्ष 10 में शामिल किया गया। प्रताप ने निराश होकर चलना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे जज शीर्ष 3, 2 तक पहुंच रहे थे, और अंत में प्रथम पुरस्कार की घोषणा की गई "कृपया भारत से श्री प्रताप गोल्ड मेडलिस्ट का स्वागत करें" यह सुनते ही वे खुशी से रोने लगे। उस समय उन्होंने स्वयं अपनी आँखों से यूएसए के झंडे को नीचे करते तथा भारतीय ध्वज को ऊपर जाते देखा।
उन्हें 10000 डॉलर समेत समारोह में पुरस्कृत किया गया।
उन्हें पीएम मोदी, कर्नाटक के विधायक और सांसद द्वारा बुलाया गया और वहाँ सभी ने उन्हें सम्मानित किया। फ्रांस ने उन्हें बहुत उच्च व्यवस्था के सभी भत्तों सहित नौकरी की पेशकश की। परंतु उन्होंने साफ मना कर दिया और अब पीएम ने उन्हें सम्मानित कर डीआरडीओ में कार्यरत किया।।
मुल पोस्ट श्री श्रीकांत भारवि,
भाषांतर संजय मौर्य।।
साभार :-- सलोनी यादव जी