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१० पाप सूत्र जो हमें धर्म से अधर्म की और ले जाते हैं? अपने आप को पाप के रस्ते से बचाकर उच्च धर्म पथ पर कैसे जाएँ

अधर्मप्रभवं चैव दुःखयोगं शरीरिणाम - शरीर धारियों के सभी दुःख अधर्म पर चलने से होते है. धर्मार्थपराभवं चैव सुखसयोंगंक्षयं अर्थात अक्षय अंतहीन सुख का संयोग केवल धर्म के पालन से ही सम्भव है। यह बात आज से हजारों वर्ष हमारे देव तुल्य ऋषि मनीषियों द्वारा लिखी गयी थी और इसका एक भी अक्षर अर्थहीन नहीं हुआ. अब जानते हैं साधारण शब्दों में, हम धर्म से विमुख कैसे और क्यों होते हैं.

१. दूसरों का धन सम्पदा कैसे हमारे हाथ में आये. ऐसा चिंतन ही पाप है. आरम्भ में हेराफेरी, अपराध कर "आसानी" से धन को हथियाने की सोच भी हमे अपने पथ से गिराकर हमें नर्क की और धकेलना चाहती है. दूसरों का एक छोटा सा अन्न का दाना और एक पैसा भी हमें मिल जाए ऐसा सोचते ही हमे बचाने वाली शक्तिया बोरिया बिस्तर बांधना आरम्भ कर देती हैं चलें अब ये आदमी गिरने वाला है. अपनी मेहनत से जो भी कमाया है वही सच्ची कमाई है शेष कभी फलता नहीं।

२. निषिद्ध कर्म की आकांक्षा करना। प्राकृतिक, देश समाज के नियमों और विधि नियम का उल्लंघन करते हुए कुछ भी न्याय विरुद्ध, अवैध कर्म करने की सोच ही हमारा पतन करने को पर्याप्त है. ऐसा कुछ भी सोचने से पूर्व भी सोचें के हमारे ऐसे करने से सब व्यवस्था उल्ट पलट जायेगी और इसमें सबसे अधिक हानि हमारे ही परिवार की होगी. पर्यावरण, जल और वायु को दूषित करना, अवैध उपायों से दूसरों की जमीन पर कब्ज़ा, सताकर उन्हें लूटना या उनकी किसी भी सम्पति को हानि पहुँचाना अक्ष्म्यै पाप हैं.

३. देह और इसके स्वाद, इसकी इन्द्रियों द्वारा उपजे आनंद को ही आनंद मानना. देह को अंतिम सत्य मानते हुए. ऐसा मान लेने वाला अपनी जीवन यात्रा के वास्तविक अर्थ को भुला कर अपने जीवन के उच्च लक्ष्यों पर ना जाकर, देह में ही फंसे रहना चाहने वाले - धर्म पथ से गिर जाते हैं. जो भी हमें - यही देह, इसकी अस्थायी सुंदरता को पूंजी मानकर इसे बेचने या शोषण करने को बताये - वह हमारा मित्र नहीं है, केवल दुरात्मा है जो अँधेरे में है.

४. कठोर और मलिन भाषा : जो भी अपने परिवार में, घर से बाहर., अपने और दूसरे परिवार के लोगों, बच्चों से कठोर और गन्दी, मलिन भाषा में बोले वह नीचता के स्तर से गिरने लगता है और नीचे ही गिरता चला जाएगा. बच्चे और युवा अवस्था में ऐसे बोलने वाले की बाते रोमांचक लगती हैं पर उनका प्रभाव इतना गहरा होता है की ऐसे लोगों को ही हीरो मान लिया जाता है. हीरो नहीं नीच हैं.
मातापिता को ज्ञात भी नहीं होता जब उनके होनहार बच्चे गन्दी भाषा के शब्दों का उपयोग करने लगते हैं. शब्दों का बहुत महत्व है जैसे अच्छे शब्द हमे सुख पहुंचाते हैं, मलिन शब्द हमारे अन्तःकरण को नष्ट कर सकते हैं. दुर्वचन पतन की गहरी घाटी में गिरा सकते हैं. आप किसी भी आयु के हों, अपनी भाषा पर नियंत्रण करें, निर्णय करें के अच्छे शब्दों का चयन करना है चाहे कम बोले।
अपने बच्चों को समझाएं की जो भी लोग उपयुक्त भाषा में बात नहीं करते उनके साथ मित्रता न करें; न ही उनकी किसी भी बात को सत्य माने. अधिकांश बुरे वचन और गंदी भाषी लोग वास्तव में शून्य होते हैं ऊपर से चाहे कई डिग्री धारी हों. जो आदमी सच स्पष्ट बोले चाहे कुछ शब्द कठोर लगे पर मन को शांति मिलेगी.

५. मिथ्या भाषा : मिथ्या क्या है ? कुटिलता और बेईमानी। ईमान और सरल सत्य रास्ते पर चलने वाले कभी भी झूठ नहीं बोलेंगे वह अच्छे शब्दों के प्रयोग से किसी झूठ असत्य को सत्य बताकर आपसे छल करेंगे. जो लोग अपने किसी षड्यंत्र स्वार्थपूर्ण उद्देश्य से नियमित झूठ बोले, किसी सत्य भाषी, परिश्रम करने वाले, सत्य और धर्म के पथ पर चलने वालो को नीचे दिखाने को, बार बार झूठे शब्द, मिथ्या, अनुचित और कुटिलता से बुरा भला कहे, चाहे वह कितना ही संभ्रांत, शिक्षित दिखे या अपने को बाहरी वेश भूषा से ऊँचा लगने का प्रयास करे, ऐसे आदमी को कभी भी न सुने, न उस पर विश्वास करे. ऐसा आदमी और उसके अनुगमन करने वालों को अपना दुश्मन समझना क्यूंकि वह अधर्म के पथ पर हैं और उन पर आस्था का अर्थ है हमारा पतन और पाप की और चलना।

६. पर निंदा करने वाला : जो चाहे दिखने में स्वामी साधु या विद्वान या धर्मात्मा लगे पर परनिंदा में ही लगा रहे वह आदमी कभी भी सत्य को उजागर नहीं करेगा और कुछ महत्वपूर्ण अवैध कार्य छिपा रहा होगा। आज के युग में ऐसे बहुत लोग आपको मिलेंगे जो धर्म में, ईश्वर, अवतार में और धर्म पालकों में दोष ढूंढते मिलेंगे. उनकी निंदा को संकेत समझ लें की वह अधर्मी हैं ढोंगी है और ऐसे लोग पाखंड से ही अपने को लोकप्रिय बनाते हैं. ऐसे व्यक्ति निंदा करने वाले वास्तव में स्वयं दोषयुक्त होते हैं और अपने अंतर में छिपे मल को छिपाने हेतु किसी धर्मनिष्ट की निंदा करेंगे.पर निंदा करने का पथ नर्क में गिरने का पहला पग है.
ऐसा दोष हम में भी हो सकता है चाहे अनजाने में, तो इस दोष से मुक्ति पाएं और जब भी दूसरों में दोष ढूंढ़ने का विचार आये उसी समय अपने किसी दोष की सोचें और उस पर कार्य कर उसका उपचार करें. परनिंदा से और ऊपर के सभी पापों से शरीर में भी कितने ही दोष होते हैं.

७. बिना प्रयोजन के वार्तालाप : कई बार हम किसी से बिना प्रयोजन से लम्बे वार्तालाप करते हैं तो बोलते जाना एक छोटा सा दोष दीखता है पर कुछ समय उपरांत यह जीवन में अँधेरा कर देता है. किसी विषय पर बोलकर अपनी बात समझाना, वार्तालाप करना बहुत ही सुंदर और श्रेष्ठ है पर निष्प्रयोजन या बिना किसी अर्थ के बाते करना, चुगली करना, अपना और दूसरों का समय गंवाना है। हमारा जीवन समय बहुमूल्य है इसका एक क्षण भी गंवाना ऐसा है जैसे अपने मेहनत की कमाई गंदे नाले में प्रतिदिन जाकर बहा देना। अपने आप को नियंत्रण में करना अति आवश्यक है इससे हम बड़े पाप करने से बचेंगे. आप देखें के बिना अर्थ वार्तालाप अंत में दुर्घटना, झगड़े और दुश्मनी में अनुवादित होता है. कितने ही विवाद, घर, कार्यालय, खेत, कर्मशाला व्यर्थ की बातें करने से ही आरम्भ होते हैं. दिखने में ये एक बड़ा सामाजिक मनोरंजन लगता है पर इसे एक बहुत बड़ा पाप समझे.

८. बिना दिए किसी की कोई वस्तु उठा लेना चोरी और पाप है। आज के युग में भारत में यह प्रथा बढ़ने से पाप और अधर्म बढ़ रहा है. प्राचीन और अभी कुछ समय पूर्व भारत के अधिकांश घरों में ताले भी नहीं होते थे केवल एक कुण्डी लगाकर या किवाड़ बंद कर देते थे. आज के समय में कहीं भी कुछ भी उठा लेना और बल पूर्वक चोरी जैसे अनर्थ बढ़ रहे हैं. अभी भी विश्व के अधिकांश देशों और समाज में ऐसा नहीं होता. भारत के विनाश में ऐसे अधर्म का बहुत हाथ है।
जब हम बिना किसी का दिया, कुछ भी उठा लेंगे तो किसी का किसी पर, भी विश्वास नहीं रहेगा और समाज टूट कर बिखर जाता है. अपने बच्चों और परिवार के लोगों को समझा दें के ऐसा करना चोरी और डाके से कम नहीं है. इसे हास्य में नहीं लेना चाहिए. ऐसे पाप करते करते लोग बड़े बड़े पाप करने लगते हैं और उनका कर्मों का सत्यनाश हो जाता है.

९. दूसरों को दुःख पहुँचाना - किसी भी स्थिति में, किसी भी कारण तन से, मन से या कर्म से किसी को भी दुःख पहुँचाने का अर्थ है ईश्वर पर हंसना, अपने आप को पाप के रास्ते पर ला कर बेईमानी और दुखों और बिमारियों से घिर जाना. जो भी आपको दूसरों को दुःख पहुँचाने को प्रेरित करे, वह आपका मित्र कभी नहीं होगा चाहे उसने कितने ही यत्न से वेशभूषा, दिखावे से अपने को प्रभावशाली या धर्मगुरु बनने की चेष्टा करते हुए आपको प्रेरित किया, ऐसे आदमी, पुस्तक, शक्ति या अधर्म से भाग जाएँ क्यूंकि इससे अधिक बड़ा पाप कोई नहीं है. यह सभी पापों से बड़ा पाप है और जो इस रस्ते पर चलते हैं यहाँ वहां, इस लोक में या किसी भी लोक में कभी भी न शांति पाएंगे न किसी स्वर्ग या उच्च लोक में प्रवेश मिलेगा. जो भी दूसरों को दुःख पहुंचाते हैं वह अधर्म के रास्ते पर चलकर अपना जीवन गंवाने वाले हैं पर जो ऐसा करने की प्रेरणा देते हैं उनके लिए बहुत बड़े अधोलोक, नर्क, जहन्नुम और दुर्दशा वाले वातावरण और रोग पहले से ही उपस्थित हैं और ऐसे स्थानों पर बहुत भीड़ होती है। पर दूसरों को कष्ट, दुःख पहुँचाने वाले कभी भी लौट कर नीच योनिओं में जाते हैं।

१०. पर स्त्री पुरुष के साथ अवैध संबंध : जब एक स्त्री या पुरुष की प्राकृतिक स्थति में जो संबंध हैं जो वैध और ईश्वरीय शक्ति, अग्नि और जल द्वारा साक्षी होते हैं किसी दूसरे पुरुष या स्त्री को ढूँढना या उनको देखकर उनका पीछा करना, उनका सोचना या उन्हें बल पूर्वक फुसलाना एक महा पाप है., दोष है और जीवन यात्रा को लगभग समाप्त कर सभी सुखों का अंत है. जो भी दूसरी स्त्री या पुरुष को सताने, बलपूर्वक संबंध रखने को प्रेरित करता है वह पाप का भागी है और इस प्रकार के अधर्म दूसरे पाप कर्मों की और ले जाते हैं.

ऊपर बताये गए दस प्रमुख पाप या अधर्म के सूत्र ध्यान लगा कर कई बार पढ़ें और इन पर कार्य करें। इससे आपको बहुत लाभ होगा. दूसरे अपने परिवार, बच्चे और छात्रों को इसकी शिक्षा दें. इनसे जो बचता है वह धर्म पथ पर चलता है और सफलता की और जाता है. जो धर्म से विमुख हुआ उसका जीवन कभी भी आनंद में नहीं रह सकता। कृपया इस सन्देश को दूर तक पहुंचाएं इससे ही हमारी सामूहिक सफलता सिद्ध होगी

आत्मिक समीक्षा - आध्यात्मिक यात्रा