सेवाव्रती राजकिरण स्वदेशी 's Album: Wall Photos

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शायद हम में से कुछ लोग यह स्मरण कर सकेंगे कि हमारे जीवन में कुछ ऐसे अवसर अवश्य आते हैं जब हम नीरस तर्क वितर्क तथा पुस्तकों को पढ़ते पढ़ते थक जाते हैं--क्योंकि आखिर ये पुस्तकें हमें कुछ बहुत नहीं सिखाती---और इनका पढ़ना भी अफीम खाने के समान केवल मानसिक व्यसन ही हो जाता है।इस प्रकार इन सब बातों से थककर एवं विचलित हो हमारे हृदय से एक हुक निकलती है कि 'क्या इस विश्व में कोई ऐसा नहीं है जो हमें प्रकाश दिखा सके ? अत: हे माता | यदि तुम हो तो मुझे प्रकाश दिखाओ । तुम बोलती क्यों नहीं तुम ऐसी अप्राप्य क्यों बनती हो ? तुम अपने इतने दूतों को क्यों भेजती हो और स्वयं क्यों नहीं आती ? इस कलह-क्लेश एवं पक्ष-विपक्ष के संसार में मै किसका अनुसरण तथा विश्वास करूँ ? यदि तुम प्रत्येक स्त्री पुरुष की ईश्वर हो तो तुम स्वयं अपने बच्चे से बोलने क्यों नहीं आती और देखो कि वह तुम्हारे दर्शन करने को उत्सुकतापूर्वक तैयार है कि नहीं ? ” ऐसे विचार हम सभी के मन में उठते हैं परन्तु कब जब हमें बडा मानसिक कलेश होता है ! पर दूसरे ही क्षण हम उन्हें भूल जाते हैं, क्योंकि हमारे चारों ओर अनेकों मोहरूपी जाल हैं | कुछ क्षण के लिए हमें ऐसा प्रतीत होता है कि हमारे लिए स्वर्ग का द्वार खुल जायगा और ऐसा प्रतीत होता है कि हम स्वर्गीय दिव्य प्रकाश में तन्मय हो जायेंगे, परन्तु फिर थोडी देर बाद हमारा पाशविक अंश हमें इन देवी दृश्यों से दूर पटक देता है । हम फिर पशु के समान नीच गति को पहुँच जाते हैं और खाने, पीने, मरने, जन्म लेने और फिर खाने पीने में व्यस्त हो जाते हैं | परन्तु कुछ असाधारण पुरुष ऐसे होते हैं कि उनके सामने चाहे कितने भी प्रलोभन क्यों न हों पर यदि उनका मन एकबार ध्येय की ओर आकर्षित हो गया तो फिर वह माया-जाल द्वारा इतनी सरलता से विचलित नहीं होता, क्योंकि वे सत्यस्वरूप परमेश्वर के दर्शन करने के इच्छुक होते हैं ओर यह भलीमाँति जानते हैं कि यह जीवन नाशवान है | उनका यही मत रहता है कि उच्च प्रकार की विजयप्राति के लिए यदि मरना हो तो अत्युत्तम है। और वास्तव में पाशविक अंश के ऊपर विजय प्राप्त कर लेने तथा जन्म-मरण के प्रश्न को सुलझा लेने और अच्छे तथा बुरे के बीच में भेद का ज्ञान प्राप्त कर लेने की अपेक्षा और श्रेष्ठ है ही क्या ?