जिंबाब्वे के एक बैंक - जिमबैंक - ने लॉटरी की घोषणा करी. जनवरी 2000 में देश की राजधानी हरारे में जनता के समक्ष एक लाख डॉलर वाले प्रथम पुरुस्कार का विजेता टिकट निकाल के नाम पढ़ा गया. नाम था - महामहिम राबर्ट मुगाबे, जिंबाब्वे के राष्ट्रपति.
यह घटना फिर से याद दिलाने की आवश्यकता इसलिए पड़ी कि सोनिया परिवार को मिली "लाटरी" के बारे में निरंतर नयी जानकारी सामने आ रही है।
एक आम नागरिक, प्रियंका, को कौड़ियों के किराए पे मिली कोठी से लेकर परिवार के द्वारा चलाए जा रहे NGOs, जैसे कि राजीव गांधी फ़ाउंडेशन, राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट और इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्रस्ट, के द्वारा हड़पी गयी अरबो रुपये की जमीन, संपत्ति और धन, मुगाबे को मिली लाटरी की तरह है।
वर्ष 1991 में राजीव गाँधी की मृत्यु के एक महीने के बाद ही राजीव गांधी फ़ाउंडेशन एवं राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना हो गयी। फिर उसी वर्ष वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने बजट में इस NGO को 100 करोड़ रुपये के अनुदान की घोषणा कर दी। जब बाद में RTI में इन NGO के बारे में जानकारी मांगी गयी, तो उस समय के मुख्य सूचना आयुक्त, वजाहत हबीबुल्लाह, ने कहा कि राजीव गांधी फ़ाउंडेशन एक निजी संस्था है जिसके बारे में सूचना नहीं दी जा सकती। मजे की बात है कि हबीबुल्लाह राजीव गांधी फ़ाउंडेशन के सेक्रेटरी रह चुके थे।
मैं लिखता आ रहा हूँ कि स्वतंत्रता के बाद भारत का शासन एक ऐसे अभिजात वर्ग के हाथ में चला गया जिन की जड़ें अपने देश में नहीं थी. वह विदेशी अभिजात वर्ग का हिस्सा बन गए और उन्हीं की नीतियों को देश में लागू करते रहे. उन नीतियों का उपयोग अपने लिए रेवड़ियां बांटने में करते रहे.
नहीं तो ऐसा संभव नहीं था कि जापान और चीन गरीबी से बाहर निकल आए, लेकिन भारत उनके शासन काल तक भीषण गरीबी से जूझ रहा है. इसका कारण यह है कि वे जानबूझकर ऐसी नीतियां बनाते आए हैं जिनको जनता समझ ना सके और सरकार को माई बाप समझते हुए कुछ रेवड़ियों के चक्कर में ही पूरी जिंदगी निकाल दें.
यह वर्ग जानबूझकर शिक्षा, स्वास्थ्य, बैंकिंग, परिवहन और संचार व्यवस्था इत्यादि को जर्जर बना कर रखता था. अगर अधिकांश जनसंख्या पढ़ लिख नहीं पाएगी, परिवहन और संचार के साधन कम और महंगे होने के कारण नए विचारो का आदान-प्रदान नहीं कर पाएगी और ना ही संगठित हो पाएगी, इस से सरकार को अपना कंट्रोल बनाए रखने में मदद मिलेगी. जितने भी गरीब देश हैं उनमें यह बात कामन है कि उनकी परिवहन, शिक्षा, संचार व्यवस्था इत्यादि जर्जर है.
प्रधानमंत्री मोदी इस अभिजात वर्ग का रचनात्मक विनाश कर रहे है। तभी तो यह वर्ग मोदी सरकार का झूठ फैलाकर विरोध कर रहा है क्योंकि उनका लॉटरी का टिकट निकलना बंद हो गया है !