Ankush Jain vikey's Album: Wall Photos

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#हीरक_संस्मरण
क्रमांक- 250
#श्रेष्ठतम_श्रेष्ठ_आचार्य
भूमिका-
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का जीवन बहुत ही अद्भुत,और संघर्षमय रहा है। उनके रोम-रोम में पुरुषार्थ और परोपकार का सागर समाया हुआ है।कितनी भी विषम परिस्थितियां आ जाएं वह उन्हें समता पूर्वक सहन करते हैं और मोक्षमार्ग में निर्दोष चर्या करते हुए आगे बढ़ते जाते है।
प्रसंग
बात 2017 रामटेक चातुर्मास में दीवाली के कुछ दिन पहले की है।आचार्य श्री जी का स्वास्थ्य दिन-प्रतिदिन गिरता जा रहा था।स्वास्थ्य इतना ज्यादा खराब था कि दिन में कम से कम आठ-दश बार जंगल जाते थे। आहार में जो कुछ लेते सब निकल जाता था,जिस कारण उनका स्वास्थ्य अत्यंत कमजोर हो गया था।लोगों को आचार्य श्री जी के दर्शन भी बहुत दुर्लभ हो गए थे,दिन में सिर्फ एक बार ही कुछ समय के लिये दर्शन होते थे।सारे देश के नगरों में घर-घर गुरुदेव के स्वास्थ्य के लिये जाप,भक्ताम्बरजी पाठ आदि अनुष्ठान शुरू हो गए।
अब चातुर्मास निष्ठापन का समय था।निष्ठापन के एक दिन पहले गुरुदेव का स्वास्थ्य अधिक खराब हो गया।अगले दिन निष्ठापन का उपवास करना था। सभी महाराज ईर्यापथ भक्ति के दौरान गुरुदेव से बोलें-आचार्य श्री जी! हमारा कल तक का प्रत्याख्यान।क्योंकि महाराज नहीं चाहते थे कि- कल गुरुदेव उपवास करें,इसलिए वह भी स्वयं उपवास नहीं कर रहे थे,सभी महाराजों के मन मे विकल्प बना हुआ था यदि हमने कल उपवास किया तो गुरुजी भी उपवास करेंगे,और उनका स्वास्थ्य बहुत खराब है।इसलिये सब महाराज एक स्वर में कहने लगे-हमारा कल तक का प्रत्याख्यान।
गुरु जी कहने लगे-कल तो निष्ठापन हैं,उपवास करना है। तभी संघ के ज्येष्ठ महाराजों ने कहा- गुरु जी आपका स्वास्थ्य खराब है,वैद्य कह रहे हैं यदि कल उपवास किया तो हालत बहुत ज्यादा गंभीर हो सकती है,तो गुरुदेव बोले- अधिक से अधिक क्या होगा❓परसों दिवाली के दिन महावीर भगवान ने देह छोड़ी थी,कल हम छोड़ देंगे।हमारा तो उपवास है,अब आप सब अपना देख लो।
ऐसा कहकर गुरुदेव सामायिक में बैठ गए। सामायिक से उठने के बाद उनका स्वास्थ्य और ज्यादा बिगड़ गया।उस दिन गुरुदेव अपने पाटे पर लेटे रहे,बैठ भी नहीं पा रहे थे,अन्य महाराजों ने प्रतिक्रमण आदि आवश्यक क्रियाएं कराई थी।अगले दिन गुरुदेव ने अपने स्वास्थ्य पर ध्यान न देते हुए निष्ठापन का उपवास किया और रात में 2:00 बजे उठ गए।और रात्रि 2 बजे से लेकर सुबह 6 बजे तक 4 घंटे सामायिक की।फिर स्वयं से चातुर्मास निष्ठापन का चातुर्मासिक प्रतिक्रमण किया।और कुछ दिनों बाद गुरुदेव पुनः स्वस्थ हो गए।
धन्य है ऐसे संत जो समताभाव से सब कुछ सहन कर लेते हैं और अपने मूलगुणों में दोष नहीं लगने देते।प्रत्येक मूलगुणों का उत्कृष्टता से पालन करते हैं।चाहे कितनी भी विषम से विषम परिस्थितियाँ आ जाए गुरुदेव अपने आवश्यकों में बिल्कुल भी ढील नहीं देते,उनका जीवन संघर्षमय रहा है उन्होंने स्वयं मूक माटी में लिखा है कि-
संघर्षमय जीवन का उपसंहार नियमरुप से हर्षमय होता है।।
हे जीवनदाता गुरुदेव! हमारी यही भावना है कि- आप शीघ्र ही केवलज्ञान प्राप्त करके तीर्थंकर की सत्ता धारण कर मुक्ति वधू का वरण करें,आपके ही समवशरण में हम भी दीक्षा धारण कर मुक्ति को शीघ्र ही प्राप्त करें।

मेरी हर एक श्वांस में, हो गुरु तेरा वास।
गुणगाथा गाते हुए,निकले तन से प्राण।।

पूज्य मुनि श्री निष्पक्षसागर महाराज जी के मुख से सुना हुआ संस्मरण

स्वर्णिमसंस्मरण