Ankush Jain vikey's Album: Wall Photos

Photo 30 of 9,682 in Wall Photos

एक दिन संघ आहारचर्या के लिये निकलने के लिये आचार्य विद्यासागर सभागृह के पीछे की ओर बने मन्दिर जी मे एकत्रित हुआ वही बाजू में एक गैलरी भी है जिसमे दोनो छोर से हवा आने जाने का मार्ग खुला हुआ है लेकिन वही ऊपर की ओर पाँच छः छत्ते मधुमक्खीयो ने बना रखे है चुकि छत्ते होना एक सहज बात थी सो कुछेक साधु वहां खड़े होकर आपस मे एक दूसरे की कुशलक्षेम पूंछ रहे थे

आचार्य श्री विधि लेकर निकले ही थे कि ना जाने अचानक क्या हुआ सभी छत्ते की मधुमक्खियां एक साथ छत्ता छोड़ कर भिनभिनाने लगी , मधुमक्खियों का भिनभिनाना देख कर सभी महाराज अंदर मन्दिर जी मे आ गए और जाली का दरवाजा बंद कर लिया लेकिन मुनि श्री धीरसागर जी महाराज वहां खड़े हो कर जाप कर रहे थे सो वे निश्चल वही खड़े रहे

अगले ही पल का दृश्य बड़ा ही भयावह था देखने वालों की तक आत्मा सिहर गयी क्योंकि जितनी भी मक्खी थी एक साथ उनके शरीर पर बैठती चली गयी एक मिनिट में ही उनका पूरा शरीर मधुमक्खियों से ढक गया था हिम्मत करते हुए एक मुनिराज ने पिच्छी से हटाते हुए सभी मक्खियों को उनके ऊपर से अलग किया तब तक शरीर के प्रत्येक हिस्से में बे बड़ी बेदर्दी से काट चुकी थी यहां तक कि आंख नाक कान के अंदरूनी भाग में भी काटने के डंक स्पष्ट रूप से देखे जा सकते थे किंतु मुनि धीरसागर जी अब भी वैसे ही कायोत्सर्ग की मुद्रा में खड़े हुए जाप दे रहे थे

मधुमक्खियों के उड़ते ही जब संघ के सभी मुनिराजों ने आकर उन्हें सम्हाल कर नीचे लकड़ी के पाटे पर लिटाया ओर उनके डंक निकालने लगे सभी हतप्रभ थे हजार से ज्यादा काटे निकल चुके थे फिर भी सारे शरीर मे कांटे अभी भी दिखाई दे रहे थे

कांटो के निकलते निकलते धीरसागर जी का शरीर विष के प्रभाव से काफी फूल गया था देखने मे ही ऐसा प्रतीत होने लगा था जैसे किसी गुब्बारे में पानी भर दिया गया हो । अब तो काटे निकालने में भी डर लगने लगा था किंतु मुनि धीरसागर जी के धीरज को देखिये मुँह से आह भी नही निकल रही थी, इतने में शोर होने लगा आचार्य श्री आहार के उपरांत वापिस आ रहे थे सभी ने आचार्य श्री को जानकारी दी किन्तु आचार्य श्री भीड़ में आ कर देखने की जगह अपने कक्ष में जाकर बैठ गए और सभी से एकांत करने को कह मुनि श्री को कक्ष में ही लाने का निर्देश दिया

बड़ी मुश्किल से दो मुनिराज उनके विकृत शरीर को उठाकर आचार्य भगवन के कक्ष में ले गए तब आचार्य भगवन उठे और चंदन के शीतल तेल एवं रुई लाने कहा । आचार्य श्री ने रुई पर थोड़ा सा चन्दन तेल लेकर मुनि धीरसागर जी की पलको पर जो विकृत होकर लटक गयी थी लगाया और तेल की शीशी को बापिस रखने दे दिया

वहां खड़े एक मुनिराज ने शीशी अपने हाथ मे ली और उसे रखने मात्र बीस कदम ही गए होंगे और तेज कदमो से चलते हुए तुरंत वापिस भी आ गए किन्तु अंदर का नजारा देख वह एक दम से अवाक रह गए मुनि धीरसागर जी एकदम से स्वस्थ होकर आचार्य भगवंत की वंदना कर रहे थे ऐसा आश्चर्य ओर चमत्कार अपनी आंखों से देख उन्हें अपने गुरु आचार्य विद्यसागर जी पर गुरुर हों गया और श्रद्धा अपने चरम पर पहुच गयी

ऐसे साधक जिन्होंने साधना को ही सर्वोपरि माना और साधना के प्रभाव से प्राप्त इन ऋद्धि सिद्धियों को अपने जीवन मे कोई महत्व ही नही दिया तभी तो लोक में शिरोमणि संत के रूप में पूज्य हुए , ऐसे संत आचार्य विद्यासागर जी महाराज के चरणों मे अपने शीश को नवाता हुआ भांवना भाता हु वे सदा जयवंत हो_