Ankush Jain vikey's Album: Wall Photos

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#संयम_के_सुमेरु_आचार्य_विद्यासागर

एक बार की बात है आचार्य भगवंत का सारा संघ रहली पटना में विराजमान था बारिश घनघोर हो रही थी लोग यह नही समझ पा रहे थे कि कारण क्या है क्योंकि इतनी अधिक बारिश एक साथ कभी नही देखी थी चातुर्मास का समय बिलकुल नजदीक था मात्र 4 दिन शेष थे और पाँचवे दिन चातुर्मास की स्थापना की जानी थी
पास में बहने वाली नदी अपने पूरे वेग के साथ बह रही थी देखने में ऐसा लगता था जैसे अभी अपने सारे तट बन्धो को तोड़ कर पूरे गाँव को अपने मे समा लेना चाहती हो जल स्तर भी बढ़ते बढ़ते पुल से 14 फ़ीट ऊँचाई का हो गया था और पानी का गिरना अभी भी निरंतर जारी था यही स्थिति दो दिन और निरंतर बनी रही जल स्तर कम ही नही हुआ तो रहली के लोग खुशियां मनाने लगे नाचने गाने लगे तैयारियां करने लगे पांडाल टीनशेड आदि की व्यवस्थाओं का आर्डर करने लगे बोरा भर भर श्री फल चढ़ाते हुए चतुर्माश की विनती करने लगे और आचार्य श्री जी अभी भी हँसते हुए सभी को आशीर्वाद दे देकर मन खुश कर रहे थे
तीसरे दिन आहारचर्या सम्पन्न हुई तब भी पानी गिर ही रहा था संघ ने लौट कर सामायिक की और थोड़ी देर बाद आचार्य भगवंत ने पिच्छी कमंडल ली और बाहर की ओर निकल गए सभी लोगो ने देखा संघ के साधुओ ने भी देखा लेकिन पुल पर 14 फ़ीट पानी है विहार थोड़ी ना होगा ऐसा जान कर शांत मन से वही बैठे रहे बस कुछेक बालक जो श्रद्धा से भरे हुए थे गुरुदेव के पीछे हो लिये जैसे ही गुरुदेव थोड़ी आगे पहुचे बालको से कहा मन्दिर जी जाकर सभी महाराजो से कहे एक साथ यहाँ आ जाये तब तक हम यही बैठे है ऐसा कहते हुए पास की एक शिला पर बैठ गए
पानी के बहने का शोर ही इतना तीव्र था कि कान के पर्दे हिलने लगे थे तो पानी के वेग का अनुमान तो आप लगा ही सकते है कुछ ही देर में सकुचाते हुए सारा संघ वहां तक आ पहुचा तब तक आचार्य भगवंत उसी शिला पर बैठे भक्तिया पड़ रहे थे
पूरा संघ आ गया है ऐसा जानकर आचार्य भगवंत ने सभी को एक साथ पीछे आने को कहा और जलधारा की ओर बढ़ गए जैसे जैसे आचार्य भगवंत चलते जाते पानी उनके पंजो से बड़ कर घुटने तक आ गया फिर भी वे निर्भीक निडर होकर चले जा रहे थे फिर जो हुआ सभी को आश्चर्यचकित कर देने वाला था क्योंकि वे बढ़ते ही जा रहे थे और पानी उनके घुटनो तक ही था यहाँ तक कि वे पार भी हो गए तब भी पानी घुटनो तक ही था
आचार्य भगवंत ने नदी पार कर पीछे की ओर देखा और तब तक पीछे देखते रहे जब तक पूरा संघ नदी पार कर गए जैसे ही आचार्य श्री आगे बढे देखने वाले कहते है एक भी आदमी एक भी वाहन फिर नही निकल पाया सभी 90 किलोमीटर का रास्ता तय कर बीनाबारह तक जाने वाले मार्ग पहुचे
धन्य है हमारे आचार्य भगवान जिन्होंने जल अग्नि वायु मन बुद्धि वाणी आदि पर अपनी विजय प्राप्त कर ली है प्रकृति भी उन्हें रास्ता प्रदान करती है यह उनकी साधना का ही प्रभाव है।
आज के दिन उनके ऐसे संस्मरणों को लिखना मन को बड़ा ही हर्षित कर रहा है मन मे गुदगुदी सी होती है कि ऐसे गुरुदेव की चरण रज हमे प्राप्त हो रही है
संयम स्वर्ण महोत्सव के उपसंहार की पावन वेला पर आप सभी को हार्दिक बधाई
श्रीश ललितपुर