छिन्दवाड़ा में मूकमाटी रचियता आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य मुनि श्री विमल सागर जी, मुनि श्री अनंत सागर जी, मुनि श्री धर्म सागर जी, मुनि श्रीअचल सागर जी, मुनि श्री अतुल सागर जी, मुनि श्री भाव सागर जी ये 6 बाल ब्रह्मचारी मुनि विराजित है
मुनिश्री विमलसागर जी महाराज की तपस्या मुनिश्री ने लगातार 6 उपवास किये थे एवं 18 घंटे तक लगातार सामयिक में खड़े रहे थे। मुनिश्री 24 घंटे स्त्रोतों का पाठ करते रहते हैं। मुनिपुंगव सुधासागर जी भी मुनिश्री विमलसागर जी की तपस्या की मुक्तकंठ से प्रशंसा करते है। मुनिश्री अनंतसागर जी महाराज हमेशा मौन रहते हैं और लेखन कार्य मे लगे रहते हैं। मुनिश्री धर्मसागर जी बोलते नही है लेकिन उनकी कलम बोलती है मुनिश्री ने अनेक कवितायें लिखी है। मुनिश्री अचलसगर जी की गृहस्थ अवस्था की बहिन आर्यिकाश्री श्रुतमती माताजी है। मुनिश्री अतुलसागर जी कठोरतम चर्या के धारी है कई बार बिना पाटे भूमि पर शयन करते है,चटाई भी नहीं लेते,ना श्रावको से अनावश्यक चर्चा करते है। सिद्धान्त, व्याकरण, न्याय के ज्ञाता हैं और वैयावृत्ति में हमेशा तत्पर रहते हैं।
मुनिश्री अचलसागर जी ने प्रवचन में कहा कि गुरु कि महिमा न्यारी है उनके बारे में क्या कहा जाय गुरु की कृपा दृष्टि हमेशा बनी रहे। मुनिश्री अनंतसागर जी ने कहा कि वैद्य का कार्य है रोगों को दूर करना चाहे टेबलेट से हो या काढ़े से हो। मुनिश्री विमलसागर जी ने कहा कि यह जिनमुद्रा बिना बोले ही उपदेश देती है। भगवान की मूर्ति बिना बोले ही सम्यक दर्शन को प्राप्त करा देती है। मुनियों की चर्या अनूठी होती है। हमारे आचार्यों ने काव्य के रूप में ही उपदेश दिया है चाहे पदमपुराण हो या हरिवंशपुराण।
हिंदी भाषा जरूरी है क्योंकि स्वप्न हिंदी में ही आते हैं। मन यदि सयंत होता है तो सही कार्य होता है नहीं तो खतरनाक होता है। मंच संचालन शुभांषु जैन शहपुरा ने किया