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India China 1962 War: मेजर ओंकारनाथ ने बयां की जंग की कहानी, इस छोटी सी चूक से फिसली थी जीत

अशोक सिंह, वाराणसी। उस वक्त हमारे पास थ्री-नाट-थ्री राइफलें और चीनी सैनिकों के पास मशीनगन जैसे बेहतर हथियार थे। इंडियन आर्मी के एक सेक्शन में महज एक एलएमजी थी। इसके बावजूद भी चीनी सैनिक भारतीयों से डरे हुए थे। नामकाचू वैली में चार प्वाइंट थे और चारों की कमान एक-एक अफसर ने संभाल रखी थी। वहां 20 अक्टूबर को घमासान युद्ध हुआ, 72 घंटे हम लोगों ने चीनी सैनिकों को आगे नहीं बढ़ने दिया। दोनों तरफ भारी नुकसान हुआ। यह बताते हुए छह दशक बाद मानो एक बार फिर मोर्चे पर पहुंच गए हों। 1962 में भारत-चीन युद्ध में शामिल रहे मेजर ओंकारनाथ दुबे सेकंड राजपूत रेजीमेंट में शामिल रहे बताते हैं कि उस जंग को 'आपरेशन ओंकार' के नाम से भी जाना जाता है।

लाल हो गया था नामकाचू का पानी

मेजर ओंकारनाथ आगे बताते हैं- "नामकाचू नदी का पानी दो दिनों तक लाल रहा। लद्दाख से नीफा तक के मैदान में सबसे घमासान लड़ाई नामकाचू वैली में ही लड़ी गई थी। संख्या बल की लड़ाई में हमारे गोला-बारूद और रसद खत्म हो गए। इसके साथ ही कलिंगा एयरवेज ने बड़ी गलती कर दी। नामकाचू वैली के एक तरफ रसद गिराई और दूसरी ओर हथियार। नहीं तो हम लोग 1962 की लड़ाई लगभग जीत गए थे। इस लड़ाई की कहानी जेपी डालवी की पुस्तक "हिमालयन ब्लंडर" और "रिवर ऑफ साइलेंस" में विस्तार से है।

16 गोलियां लगने के बाद गिरफ्तार

वह बताते हैं कि मैं उस समय हवलदार रोशन सिंह के सेक्शन में सेकंड लेफ्टिनेंट था। उम्र सिर्फ 21 साल की थी। रोशन सिंह मोर्चा संभाले थे। दूसरी ओर से मैं 15 मैगजीन लेकर कूद पड़ा। मैन टू मैन चल रही लड़ाई में आटोमेटिक बर्स्ट फायर में मुझे 16 गोली लगी। सीने में दाहिने तरफ गोली लगने से बच गया। घायल अवस्था में 24 घंटे पड़ा रहा। मैं 30 साथियों के साथ कैद हो गया।

पूछते थे, क्या स्पेशल फोर्स है राजपूत रेजिमेंट

घायल हालत में ही हमें चीनियों ने गिरफ्तार कर लिया और ओताला नामक स्थान पर टूटे घरों में रखा। खाने में एक कटोरी चावल देते थे। चीनी कमांडर हमसे पूछते कि क्या राजपूत रेजिमेंट भारत की स्पेशल बटालियन है? हमें बंदियों की अदला-बदली में दो महीने बाद छोड़ा गया।

फायर पर ही छिप जाते चीनी

मेजर ओंकार 1962 ही नहीं 65 और 71 की लड़ाई में भी शामिल थे। घायल सैनिक होने से 1980 में उन्हें मेडिकल ग्राउंड पर सेवानिवृत्त कर दिया गया। वे कहते हैं कि चीनी सैनिक डरपोक होते हैं। एक फायर करने से ही भाग कर छिप जाते हैं। मौका देख फिर चूहे की तरह बिल से निकलते हैं। एक सैनिक मारने के लिए दसियों के समूह में आते हैं।

संख्या बल (न्यूमेरिकल सुपीरियारिटी) के बूते ही उनकी लड़ाई होती है। एक ब्रिगेड पर हमले को दस-दस चीनी ब्रिगेड आती है, जबकि भारतीय सेना अंग्रेजों के जमाने से वन-इन टू-थ्री (एक पर तीन) के फार्मूले पर मैदान में उतर जाती है। इस बार 15 जून को पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी पर गलवन घाटी में भी उन्होंने ऐसा ही किया .....वन्दे मातरम