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6.7.2020
*संसार में जितनी समस्याएं हैं, उतने ही समाधान भी हैं। लोग समस्याओं का समाधान ढूंढते नहीं, और उस समाधान को स्वीकार करते नहीं। इसलिये समस्याएँ हल नहीं हो पातीं।*
वेद तथा ऋषियों के बनाए दर्शन आदि ग्रंथों में ऐसा लिखा है कि *संसार में जो भी व्यक्ति जन्म लेता है, उसे कहीं न कहीं, कोई न कोई दुख अवश्य ही भोगना पड़ता है।*
ऐसा कोई व्यक्ति संसार में आज तक उत्पन्न नहीं हुआ कि जिसने जन्म लिया हो और दुखी न हुआ हो। भूख प्यास गर्मी ठंडी सर्दी जुकाम बुखार आदि रोगों से रोगी होना, दुर्घटना आदि से अंग भंग होना, झूठे आरोप लगना इत्यादि कारणों से अनेक प्रकार के छोटे बड़े दुख प्रायः सभी को भोगने पड़ते हैं।
फिर भी जो भी समस्याएं जीवन में आती हैं, उन सब समस्याओं के कोई न कोई समाधान अवश्य ही होते हैं।
लोग उन समस्याओं को ठीक से समझते नहीं। उनका समाधान ठीक से ढूंढते नहीं, और यदि समाधान मिल भी जाए, तो आलस्य प्रमाद आदि दोषों के कारण उसे आचरण में लाते नहीं।
कुछ लोग समाधान आचरण में लाना चाहते हैं, परंतु दूसरे मूर्ख और दुष्ट लोग उनके समाधान में बाधक बनते हैं, और उनकी समस्या को हल होने नहीं देते। उन मूर्खों और दुष्टों का भी समाधान होता है, परंतु समाज और देश के लोग स्वार्थ एवं अविद्या आदि दोषों के कारण, उस समाधान को करते नहीं, इसलिए समस्याएं हल नहीं हो पाती।
यदि संसार के लोग बुद्धिमत्ता ईमानदारी और सत्यग्राहिता को धारण करें, तथा पक्षपात अन्याय आदि दोषों को छोड़ देवें, तो सभी समस्याओं का समाधान हो सकता है। *यहां तक कि जो सबसे बड़ी समस्या है, - "संसार में जन्म लेना", इसका भी समाधान हो सकता है। और वह है "योगाभ्यास करना।"* योगाभ्यास अर्थात ईश्वर का ध्यान करना, समाधि लगाना। अपने अविद्या आदि पांच क्लेशों का नाश करना। ऐसा करने से जन्म मरण का चक्र ही छूट जाएगा, और सारी समस्याओं का समाधान एक ही उपाय से हो जाएगा। *अर्थात अगला जन्म लेने की समस्या ही खत्म हो जाएगी। अगला जन्म नहीं होगा, मोक्ष हो जाएगा। सारी समस्याओं का एकमात्र यही सबसे बड़ा समाधान है।*
मोक्ष होने पर कोई समस्या बाकी नहीं रहेगी। मोक्ष प्राप्त करना कठिन कार्य है। कोई कोई हिम्मतवाला व्यक्ति ही इस कार्य को करने का साहस करता है। जो ऐसा साहस करेगा, वही व्यक्ति तब समस्याओं से छूट पाएगा।
*इसलिए यह नहीं कह सकते कि समस्याओं का समाधान नहीं है। समाधान तो है, परंतु लोग करना नहीं चाहते। इसीलिये समस्याएं दूर नहीं हो पातीं।*
- *स्वामी विवेकानंद परिव्राजक*