*केवल साँस लेना ही जीवन नहीं है। सत्य को जीवित रखना ही असली जीवन है।*
संचार में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं दिखता, जिसके साथ अन्याय न हुआ हो। कम या अधिक अन्याय सभी के साथ होता है। मजदूर से लेकर राष्ट्रपति तक, सबके साथ अन्याय होता है। *किसी के साथ घर में होता है, किसी के साथ स्कूल में, किसी के साथ कॉलेज में, किसी के साथ बस में, किसी के साथ ट्रेन में, किसी के साथ बाजार में, किसी के साथ जंगल में, सबके साथ कहीं न कहीं अन्याय होता ही है।*
जब किसी पर अन्याय होता है, तब वह व्यक्ति दुखी होता है। उस समय दूसरे लोग, जो उस अन्याय की घटना को देखने वाले होते हैं, उनमें से कुछ लोग उस अन्याय का विरोध करते हैं। और कुछ लोग चुपचाप तमाशा देखते रहते हैं।
*इसी प्रकार से अनेक अवसरों पर जब लोगों में बातचीत चलती है, तो कुछ ईमानदार परोपकारी लोग सत्य बोलते हैं, और कुछ बेईमान स्वार्थी लोग झूठ बोलते हैं।* वहाँ भी ऐसा ही होता है। कुछ लोग उस झूठ का विरोध करते हैं, और कुछ लोग चुपचाप तमाशा देखते हुए, उस झूठ का समर्थन करते हैं। ऐसी स्थिति में चुप रहकर झूठ का समर्थन करने वाले स्वार्थी लोग यह समझते हैं कि *यदि हम इस झूठ का विरोध करेंगे, तो सामने वाला व्यक्ति हमसे नाराज हो जाएगा। और इसके नाराज होने से हमारे भविष्य के स्वार्थ इस व्यक्ति से पूरे नहीं हो पाएंगे।*
इसलिए वे चुपचाप मौन रहकर तमाशा देखते रहते हैं। महापुरुष लोग इस संबंध में कहते हैं कि - *तमाशा देखने वाले, मौन रहकर झूठ का समर्थन करने वाले, या "दूसरा व्यक्ति नाराज न हो जाए," ऐसा सोचने वाले मूर्ख एवं दुष्ट लोग भी मृत व्यक्ति के समान ही हैं।*
महापुरुषों ने तो यही निर्णय किया है कि *केवल साँस लेने का नाम जीवन नहीं है। बल्कि सत्य का समर्थन करने वाला, सत्य को जिताने वाला व्यक्ति ही जीवित है। ऐसा व्यक्ति ही ईश्वर का आशीर्वाद पाता है। वही सदा सुखी रहता है। उसे संसार का सुख और मोक्ष का सुख, दोनों मिलते हैं। बाकी तो मरे हुए जैसे ही हैं।*
इस प्रकार से यह देखने में आता है कि, जो भी व्यक्ति संसार में जन्म लेता है उसके साथ झूठ अन्याय का व्यवहार तो होता ही है। आपके साथ भी जब ऐसा झूठ अन्याय का व्यवहार हो,आपको न्याय न मिले, तब घबराएँ नहीं। उसे ईश्वर के न्यायालय में छोड़ देवें और उस घटना को भूल जाएँ। पूरा न्याय तो ईश्वर ही करेगा। आगे के लिए सावधानी अवश्य रखें कि दोबारा वैसा झूठ अन्याय का व्यवहार, दूसरे लोग आपके साथ न कर पाएँ। उस झूठ अन्याय से अपनी रक्षा अवश्य करें। चिंता न करें। घबराए नहीं। उसका समाधान अवश्य ढूंढें। ढूंढने वाले व्यक्ति को कोई न कोई समाधान मिल ही जाता है। *सदा सत्य का ही समर्थन करें, झूठ का कभी नहीं। आपको बहुत पुण्य और सुख मिलेगा।*
- *स्वामी विवेकानंद परिव्राजक*