Parvesh Kumar's Album: Wall Photos

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16.7.2020
*मौन रहना साहस, शक्ति और आत्मनियंत्रण का प्रतीक है, कमजोरी या कायरता का नहीं।*
जब लोग आपकी इच्छा के विरुद्ध काम करते हैं, तब आपको क्रोध आता है। क्या आप ऐसा सोचते हैं कि *सब लोग* आपकी इच्छा के अनुकूल कार्य करेंगे? दूसरे लोग *सारे काम* आपकी इच्छा के अनुकूल करेंगे? *यदि आप ऐसा सोचते हैं, तो यह आपकी बहुत बड़ी भूल है।*
क्योंकि संसार में ऐसा देखा जाता है, कि किन्हीं भी दो मनुष्यों के विचार 100% एक जैसे नहीं होते। उनमें कहीं न कहीं विरोध या टकराव होता ही है। जब व्यक्ति के विचारों में विरोध या टकराव होता है, तो उसके मन में खिन्नता, क्रोध आदि दोष भी उत्पन्न होते हैं। मन में इन दोषों के उत्पन्न होने पर, कुछ समय बाद ये क्रोध आदि वाणी में आने लगते हैं। तू तू, मैं मैं, गाली गलौच आदि आरंभ हो जाते हैं। और कुछ समय बाद जब सीमा पार हो जाती है, तो शारीरिक व्यवहार में भी इन क्रोध आदि दोषों का प्रभाव दिखाई देने लगता है। फिर लोग लड़ाई-झगड़ा मारपीट आदि तक उतर आते हैं।
परंतु ऐसी झगड़े वाली स्थिति से बच कर रहना संयम की बात है, कठिन बात है। तपस्या की बात है। *ऐसी स्थिति में व्यक्ति मौन रहे, तो यह उपाय अच्छा है। वह दूसरे व्यक्ति के गलत आचरण की उपेक्षा कर दे। मन में भी उन बातों पर विचार न करे। वाणी से भी कुछ न कहे, मौन रहे। शरीर से भी लड़ाई झगड़ा न करे। उस झगड़ालू व्यक्ति और उन परिस्थितियों से दूर रहे, जो उसके अंदर खिन्नता, क्रोध आदि दोषों को उत्पन्न करते हैं।*
सामान्य रूप से ऐसा करना बहुत कठिन है। फिर भी कोई कोई हिम्मत वाला, बुद्धिमान व्यक्ति ऐसा करने का प्रयत्न करता है, कि वह उपेक्षा कर दे, मौन रहे, शांत रहे। *ऐसी स्थिति में दूसरे लोग उसे कायर कमजोर दब्बू डरपोक आदि आदि प्रकार का व्यक्ति मानते हैं, और पीठ पीछे कहते भी हैं।*
लोग भले ही कुछ भी मानें। हर व्यक्ति अपने विचार करने में स्वतंत्र है। वह जैसा चाहे, वैसा माने। *परंतु जो व्यक्ति स्वयं पर संयम रखता है, मौन रहता है, झगड़े से बचकर रहता है, वह वास्तव में बुद्धिमान है, संयमी है, सदाचारी है, शक्तिशाली है।* अपनी उस शक्ति के कारण ही वह स्वयं पर संयम कर पा रहा है। *तो ऐसे व्यक्ति का मजाक उड़ाना उचित नहीं है। बल्कि उसका उत्साह बढ़ाना चाहिए। उसे कमजोर डरपोक नहीं समझना चाहिए, बल्कि संयमी और बलवान समझना चाहिए। उससे प्रेरणा लेकर स्वयं भी वैसा बनने का प्रयत्न करना चाहिए।*
- *स्वामी विवेकानंद परिव्राजक*