Parvesh Kumar's Album: Wall Photos

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*अच्छा बीज बोएँ, अच्छा फल प्राप्त करें । अर्थात् अच्छे कर्म करें और सुख भोगें।*
जैसे आपके पिता और दादा की मेहनत से उनको भी सुख मिला और आपको भी। क्योंकि उन्होंने अच्छे कर्म किए। उनके कर्मों का फल उन्होंने भोगा, और उनके कर्मों का परिणाम आज आप भोग रहे हैं। इसी प्रकार से जो मेहनत आप आज करेंगे । उससे भविष्य में आपको भी सुख मिलेगा और आपके बेटे पोतों को भी। *इसलिये अपने परिवार समाज देश एवं संसार की खुशहाली प्रसन्नता आनंद सुख शांति के लिए आपको अच्छे काम करने ही पड़ेंगे।*
बहुत से लोग संसार के बारे में चिंतन करते हैं, कि हम संसार का उपकार करेंगे। उनका चिंतन अनेक बार आगे बढ़ते बढ़ते चिंता में भी बदल जाता है। *चिंतन तो करना चाहिए, परंतु चिंता नहीं करनी चाहिए।*
देश दुनियाँ का कल्याण कैसे करें, इस विषय का चिंतन आरंभ होता है, अपने आप से। *अर्थात सबसे पहले अपना सुधार करें। अपने दोषों को दूर करें, और अपने अंदर गुणों को धारण करें। अपने कर्मों को सुधारें। इसी का नाम है अच्छे बीज बोना।* जब आप अच्छे बीज बोएँगे, तो अच्छे फल भी मिलेंगे। अर्थात जब अच्छे कर्म करेंगे, तो फल स्वरूप आपको सुख मिलेगा। इसलिए पहले स्वयं अपना सुधार करें। फिर धीरे-धीरे परिवार का सुधार करें। उसके बाद समाज राष्ट्र और संसार के सुधार की बात सोचें।
*अधिकतर ऐसा देखा जाता है कि लोग अपना व्यक्तिगत थोड़ा सा सुधार कर लेते हैं, वह भी सैद्धांतिक रूप से। कुछ इधरउधर से थोड़ा स्वाध्याय कर लेते हैं, परंतु आचरण में कोई विशेष सुधार नहीं करते, और यह मान लेते हैं कि अब हम पूर्ण विद्वान हो गए। हमने जो सीखना था, सब सीख लिया। अब हमें आगे कुछ और तपस्या करने की आवश्यकता नहीं है। अब हम संसार का सुधार करेंगे। ऐसे संसार का सुधार नहीं होता।*
वेदों और ऋषियों के अनुसार यह पद्धति है --> *पहले अपना सुधार करें। सिर्फ शाब्दिक ज्ञान ही पर्याप्त नहीं है। वास्तविक ज्ञान चाहिए। तपस्या चाहिए। आपके जीवन में वेदोक्त उत्तम आचरण होना चाहिए। तब आपका सुधार हुआ, ऐसा माना जाएगा। फिर ऐसे ही अपने परिवार का सुधार करें। उसके बाद पड़ोस गली मोहल्ले का सुधार करें। ऐसे धीरे-धीरे अपना क्षेत्र बढ़ाते जाएं। तब जाकर देश और दुनियाँ का सुधार होगा।* आपकी कार्यशैली में इस विधि से अगर कुछ भिन्नता हो, तो उसे कृपया ठीक कर लेवें।
- *स्वामी विवेकानंद परिव्राजक*