वर्तमान कथित वैदिक विद्वान् सोचते हैं कि वेद रुचिकर संस्कृत साहित्य के रूप में मात्र कुछ कत्र्तव्य बोध का ग्रन्थ है, कोई-2 वेद को विज्ञान का ग्रन्थ मानते भी हैं परन्तु उनका वह विज्ञान तुकबन्दी के साथ वर्तमान विज्ञान का कुछ अंधानुगमन ही करता प्रतीत होता है। कोई केवल कर्मकाण्ड का ग्रन्थ मानते हैं, जबकि वर्तमान भौतिक शास्त्री सोचते हैं कि विज्ञान केवल अंग्रेजी भाषा में ही, वह भी विदेशों से आयातित, उपलब्ध है। वास्तविकता यह है कि वे दोनों ही वेद व विज्ञान से अनभिज्ञ रहकर संसार को अन्ध मार्ग पर ले जा रहे हैं।
वेद के पक्षधर विद्वान् यह नहीं विचारते कि क्या परमात्मा संस्कृत भाषा, व्याकरण व साहित्य लिखाने के लिए वेद ज्ञान देता है? क्या इससे ही मनुष्य जीवन का संरक्षण सम्भव है? क्या विज्ञान वेद का विषय नहीं है? क्या इसके लिए हमें सदैव विदेशों का ही दास बने रहना होगा?
उधर जो वर्तमान भौतिक शास्त्री यह विचारते हैं कि विज्ञान केवल विदेशों की देन है, उसकी भाषा केवल अंग्रेजी है अथवा अन्य विदेशी भाषाएं हैं, मैं उनसे पूछना चाहता हूँ कि उन्हें अपने पूर्वजों को मूर्ख बताने में क्यों इतना आनन्द आता है? क्यों उन्हें विदेशी दासता से ही प्रेम है? विज्ञान क्यों संस्कृत भाषा में नहीं हो सकता? क्या मध्यकालीन आचार्यों व वेद व धर्म के नाम पर पल रहा भ्रम वा पाखण्ड ही उन्हें ऐसा मानने को विवश करता है? यदि ऐसा है, तो मैं उन्हें नयी दृष्टि देने का प्रयास कर तो रहा हूँ। आइए, हमारे साथ