Parvesh Kumar's Album: Wall Photos

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यदि आप में कलाकारी है, तो किसी अपने को, जीवन भर अपना बनाए रखें। कठिन बहुत है, असंभव नहीं।*
प्रायः सभी लोग स्वयं को बहुत बुद्धिमान मानते हैं। बहुत बड़ा कलाकार मानते हैं। अपनी कलाकारी को सिद्ध करने के लिए वे दिन भर ऐसे प्रयास भी करते रहते हैं। *जैसे किसी की खिल्ली उड़ाते हैं, किसी को बदनाम करते हैं, किसी पर झूठा आरोप लगाते हैं, किसी का दोष उछालते हैं। अपने गुणों का व्याख्यान करते हैं, अपनी बुद्धिमत्ता के किस्से सुनाते रहते हैं। बहुत कुछ अपने विषय में अतिशयोक्ति भी करते रहते हैं, इत्यादि।*
इन सब कार्यों से वे दूसरों को प्रभावित करना चाहते हैं। और ऐसा प्रभावित करना चाहते हैं कि दूसरे लोग उनको बहुत ऊंचा व्यक्ति मानें। उनके साथ जुड़े रहें। जब कि होता है इससे उल्टा। ऐसे अनुचित कार्यों से लोग, ऐसे कार्य करने वाले से डरते हैं, दबते हैं, परंतु उनके प्रति श्रद्धालु नहीं होते। उनको कोई ऊंचा कलाकार नहीं मानते। बल्कि दुष्ट बेईमान चालाक अवसरवादी ब्लैकमेलर आदि इस रूप में देखते हैं। यदि आप किसी को प्रभावित करना चाहते हैं तो ईश्वरीय उत्तम गुणों = सेवा नम्रता सभ्यता सहयोग आस्तिकता सम्मान देना आदि के द्वारा आप ठीक प्रकार से प्रभावित कर सकते हैं।
*परंतु किसी को इन ईश्वरीय गुणों और योग्यता से प्रभावित करना तथा लंबे समय तक प्रभावित किए रखना, उसको अपने साथ जोड़े रखना, बहुत कठिन कार्य है। असंभव तो नहीं है, परंतु कठिन बहुत है।*
क्योंकि जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे के साथ संबंध जोड़ता है, तो वह तभी संबंध जोड़ता है, जब उसे दूसरे व्यक्ति से संबंध बनाए रखने में कुछ लाभ दिखाई दे।
*कुछ प्रेम मिले, कुछ सहयोग मिले, सम्मान मिले, आनन्द मिले, सहानुभूति मिले, और समय पड़ने पर आर्थिक सहायता भी मिले। कुछ अन्य प्रकार की सुविधाएं भी मिलें। तब व्यक्ति, किसी दूसरे के साथ संबंध जोड़ना चाहता है।*
और इसमें सबसे बड़ा आधार यह है कि जब तक दो व्यक्तियों के विचार आपस में मिलते हैं, तब तक उनका संबंध बना रहेगा। जैसे ही विचारों में टकराव होगा, वैसे ही संबंध में कमी आनी आरंभ हो जाएगी।
अब आप विचार कीजिए, *क्या किन्हीं दो व्यक्तियों के विचार जीवनभर 100% एक जैसे बने रह सकते हैं? आप कहेंगे - नहीं।*
तो जहाँ से भी विचारों में टकराव आरंभ होगा, वहीं से दूरियां बढ़ने लगेंगी। और यदि विचारभेद लंबे समय तक बना रहा, तो धीरे-धीरे वह संबंध कमजोर होता जाएगा। यदि विचारों का टकराव बना ही रहा, कम नहीं हुआ, तो हो सकता है आगे चलकर संबंध टूट भी जाए।
यदि वे दोनों व्यक्ति बुद्धिमान हों, एक दूसरे के विचारों को ठीक से समझ कर अपना विचारभेद कम करते जाएं, तो उनका संबंध नहीं टूटेगा। जीवन भर भी वे आपस में संगठित होकर आनंदपूर्वक जी सकेंगे।
इस प्रकार से जो व्यक्ति विचारों का तालमेल बिठाने की कला जानता है, बस वही वास्तविक कलाकार है। वही किसी अपने को जीवनभर अपना बनाए रखेगा। आप भी ऐसी कलाकारी अपने अंदर उत्पन्न करने का प्रयत्न करें, और असली कलाकार बनें।
- *स्वामी विवेकानंद परिव्राजक*