अफ्रीका का एक अशिक्षित जनजातीय समुदाय....
जिसे कोई ईश्वर कोई ग्रंथ... या अन्य किसी चीज का ज्ञान नही है.....
प्रकृति के तत्व... पंचमहाभूत ही उनके इष्ट हैं.... एवं कुछ अजीब... उटपटांग मान्यताएं.....
न ये बाहरी दुनिया से मतलब रखते हैं.... न आधुनिकता से....
वस्त्रों एवं नग्नता की समझ भी बालकों जैसी सहज है......
पाप - पुण्य आदि धारणाओं से सर्वथा मुक्त....
इसी समाज के बीच एक अत्यंत आश्चर्यजनक विधि प्रचलित है.....
जब किसी विवाहित दम्पत्ति को सन्तानोत्पत्ति की इक्छा होती है.... तो सर्वप्रथम... स्त्री अपने समाज...पति..परिवार से दूर.... कुछ खाद्य एवं आवश्यक सामग्री ले के.... वन के किसी सुदूर एकांत में एक पीपल का वृक्ष ढूंढती हैं.... एवं उसके नीचे गहन शांति में कुछ समय....*(समय कभी - कभी 6 मास तक भी चला जाता है... एवं कभी कभी 1 दिवस तक भी होता है )* आंखें बंद कर ध्यान का प्रयास करती हैं... हालांकि इन्हें ध्यान का कुछ भी पता नही है.... ये लोग इसे आराम करना कहते हैं..... इस ध्यान या यों कहें आराम करने में.... वो अपने गर्भ से जन्म लेने वाली शक्ति या आत्मा का आवाहन करती हैं..... काफी प्रयास के बाद... इन्हें एक संगीत सुनाई देता है.... एक मधुर संगीत..... ये संगीत उस विशेष आत्मा का होता है.... उस संगीत को माँ याद कर लेती है.....
फिर वो वापस आकर सन्तानोत्पत्ति की क्रिया करते हैं..... जननी ये संगीत पति को सिखाती है.... अपने कुछ आस - पड़ोस के लोगों को सिखाती है.... सम्बन्धियों को सिखाती है..... जब नव मास बाद बालक का जन्म हो रहा होता है तो दाई *( प्रसव कराने वाली )* भी वही संगीत गाती हैं.....
यहाँ के प्रत्येक व्यक्ति का अपना एक संगीत है... एक अलग संगीत..... जब भी व्यक्ति परेशान होता है... अवसाद में या घोर पीड़ा में होता है.... उसे जानने वाले लोग उसे... उसका संगीत सुना देते हैं.....
आश्चर्यजनक रूप से वो तुरन्त ही सहज और आनंदित हो उठता है..... !
सभी प्रकार से सुखों.. आधुनिकता से दूर ये आदिवासी समाज... न जाने कहाँ से ये विधि सिख पाया.... परन्तु मेरी दृष्टि इन्हें अभी के पंथों में विभक्त.... एक दूसरे के खून की प्यासी... एवं अपने भगवान की रक्षा करने का भ्रम पालने वाले कुछ लोगों से बेहद उच्च एवं बेहतर मानती है... ये परम् के समीप ज्यादा हैं.....
~ मयंक पाराशर