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वेदपाठ का विश्लेषण

!!!---: वेद मन्त्रों के विभिन्न पाठ :---!!!

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संकलनकर्ता :-- योगाचार्य डॉक्टर प्रवीण कुमार शास्त्री


वेदों में किसी प्रकार की कोई मिलावट ना हो, इसके लिए हमारे मनीषियों, विद्वान् ब्राह्मणों ने, ऋषियों ने अनेक उपाय किए । उनमें से एक उपाय है वेद मंत्रों के पाठ का । ये पाठ इस प्रकार से किए गए हैं कि कोई भी व्यक्ति एक भी अक्षर की मिलावट नहीं कर सकता ।


सच तो यह है कि संपूर्ण विश्व में किसी भी भाषा अथवा ग्रंथ में इतनी विशुद्ध उच्चारण परंपरा नहीं पाई जाती है ।वेद पाठियों के मुख से आज भी वेदों का सस्वर उच्चारण ठीक उसी प्रकार से विशुद्ध रूप में सुना जा सकता है जैसा कि प्राचीन युग में किया जाता था ।






प्रत्येक शाखा के पदपाठ के पदपाठकर्त्ता ऋषि पृथक् पृथक् हैं । जैसे ऋग्वेद की "शाक्ल शाखा" के पदपाठकर्त्ता शाकल्य ऋषि, यजुर्वेदीय "तैत्तिरीय शाखा" के आत्रेय तथा सामवेदीय "कौथुम शाखा" के पदपाठकर्त्ता गार्ग्य ऋषि हैं । संकलनकर्ता :-- योगाचार्य डॉक्टर प्रवीण कुमार शास्त्री


वेदों के दो प्रकार के पाठ

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वेदों के दो प्रकार के पाठ किए गए हैं :--- 


(१.) संहिता पाठ :--- संहिता पाठ को प्रकृति पाठ भी कहते हैं, अर्थात् वेदों में जिस प्रकार से और जिस क्रम से वर्ण, अक्षर, शब्द और वाक्य रखे हुए हैं, ठीक उसी प्रकार से, उसी क्रम से पाठ करना संहिता पाठ है । इसे "प्रकृति पाठ" भी कहते हैं । यह पाठ ही वेद का मूल रूप है । यह तीन प्रकार का है । संकलनकर्ता :-- योगाचार्य डॉक्टर प्रवीण कुमार शास्त्री


"संहिता" शब्द का स्वरूप बतलाते हुए महर्षि पाणिनि ने अष्टाध्यायी (१/४/१०८) में लिखा है :---"परः सन्निकर्षः संहिता" अर्थात् वर्णानामतिशयितः सन्निधिः संहितासंज्ञः स्यात् । वर्णों के अत्यंत सन्निकर्ष अर्थात् समीपता की संहिता संज्ञा होती है । संकलनकर्ता :-- योगाचार्य डॉक्टर प्रवीण कुमार शास्त्री


 आचार्य कात्यायन ने लिखा है :--- "वर्णानामेकप्राणयोगः संहिता" अर्थात् वेदवाणी का वह प्रथम पाठ जो गुरु परंपरा से अध्ययनीय है तथा जिसमें वर्णों एवं पदों की एकश्वासरूपता या अत्यंत सान्निध्य के लिए संप्रदायानुगत संधियों तथा अवसानों से युक्त और उदात्तानुदात्त स्वरित रूपी त्रिविध स्वरों में अपरिवर्तनीयता से पठनीय वेदपाठ को "संहिता पाठ" कहते हैं । संकलनकर्ता :-- योगाचार्य डॉक्टर प्रवीण कुमार शास्त्री


संहिता पाठ को याज्ञवल्क्य शिक्षा में पुण्यप्रदा यमुना नदी का स्वरूप बतलाया गया है :---"कालिन्दी संहिता ज्ञेया" । संहिता पाठ से सूर्य लोक की प्राप्ति होती है :---"संहिता नयते सूर्यपदम्" । संकलनकर्ता :-- योगाचार्य डॉक्टर प्रवीण कुमार शास्त्री


संहिता पाठ ही पदपाठ का मूल है । जैसा कि निरुक्तकार महर्षि यास्क ने लिखा है :----"पदप्रकृतिः संहिता" । अतः यह प्रथम प्रकृति पाठ माना गया है । ऋषियों द्वारा दृष्ट इस संहिता रूप वेदपाठ का ही याज्ञिक अनुष्ठानों के समय देवता स्तुति आदि में प्रयोग किया जाता है । इसीलिए कहा जाता है :---"आचार्याः सममिच्छन्ति पदच्छेदं तु पण्डिताः" । संकलनकर्ता :-- योगाचार्य डॉक्टर प्रवीण कुमार शास्त्री


(२.) विकृति पाठ :---- विकृति पाठ वे पाठ है जो संहिता से भिन्न क्रम से पाठ किए जाते हैं । इसको विभिन्न तरह से किया जाता है और यह आठ तरह के पाठ हैं ।


इस प्रकार दोनों पाठों को मिलाकर कुल ११ पाठ होते हैं ।


११ पाठ के पहले तीन पाठ को प्रकृति पाठ व अन्य आठ को विकृति पाठ कहते हैं।


  प्रकृति पाठ

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 १ संहिता पाठ

 २ पदपाठ

 ३ क्रमपाठ 


 विकृति पाठ

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(१.) जटापाठ

(२.) मालापाठ

(३.) शिखापाठ

(४.)  लेखपाठ

(५.)  दण्डपाठ

(६.) ध्वजपाठ

(७.) रथपाठ

(८.) घनपाठ


(१.) प्रकृति पाठ

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(१.) संहिता पाठ


 इसमें वेद मन्त्रों के पद को अलग किये बिना ही यथावत्  पढा जाता है।

 जैसे 

 अ॒ग्निमी॑ळे पु॒रोहि॑तं य॒ज्ञस्य॑ दे॒वमृ॒त्विज॑म् । होता॑रं रत्न॒धात॑मम् ॥


 (२.) पदपाठ


इसमें पदों को अलग करके क्रम से उनको पढा जाता है


अ॒ग्निम् । ई॒ळे॒ । पु॒रःऽहि॑तम् । य॒ज्ञस्य॑ । दे॒वम् । ऋ॒त्विज॑म् । होता॑रम् । र॒त्न॒ऽधात॑मम् ॥


(३.) क्रम पाठ


पदक्रम- १ २ | २ ३| ३ ४| ४ ५| ५ ६

क्रम पाठ करने के लिए पहले पदों को गिनकर पहला पद दूसरे पद के साथ, दूसरा तीसरे पद के साथ, तीसरा चौथे पद के साथ इस तरह से पढा जाता है :---


अ॒ग्निम् ई॒ळे॒| ई॒ळे॒ पु॒रःऽहि॑तम् |  पु॒रःऽहि॑तम् य॒ज्ञस्य॑ |

य॒ज्ञस्य॑ दे॒वम्| दे॒वम् ऋ॒त्विज॑म्| ऋ॒त्विज॑म् होता॑रम्|

होता॑रम् र॒त्न॒ऽधात॑मम्||


(२.) विकृति पाठ

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 (१.) जटा पाठ


पदक्रम -   १ २| २ १| १ २|

                २ ३| ३ २| २ ३|

                ३ ४| ४ ३| ३ ४|

                ४ ५| ५ ४| ४ ५|

                ५ ६| ६ ५| ५ ६|

                ६ ७| ७ ६| ६ ७|

 जैसे-      अ॒ग्निम् ई॒ळे॒|  ई॒ळे॒ अ॒ग्निम्| अ॒ग्निम् ई॒ळे॒| ई॒ळे॒ पु॒रःऽहि॑तम्| पु॒रःऽहि॑तम् ई॒ळे॒| ई॒ळे॒ पु॒रःऽहि॑तम्| पु॒रःऽहि॑तम् य॒ज्ञस्य॑| य॒ज्ञस्य॑ पु॒रःऽहि॑तम्| पु॒रःऽहि॑तम् य॒ज्ञस्य॑| य॒ज्ञस्य॑ दे॒वम्| दे॒वम् य॒ज्ञस्य॑| य॒ज्ञस्य॑ दे॒वम्| य॒ज्ञस्य॑ दे॒वम्| दे॒वम् य॒ज्ञस्य॑| य॒ज्ञस्य॑ दे॒वम्| दे॒वम् ऋ॒त्विज॑म्| ऋ॒त्विज॑म् दे॒वम्| दे॒वम् ऋ॒त्विज॑म्| ऋ॒त्विज॑म् होता॑रम्| होता॑रम् ऋ॒त्विज॑म्|      ऋ॒त्विज॑म् होता॑रम्| होता॑रम् र॒त्न॒ऽधात॑मम्| र॒त्न॒ऽधात॑मम् होता॑रम्| होता॑रम् र॒त्न॒ऽधात॑मम्||


(२.)  माला पाठ


जिस तरह  पांच छह फूलो को लेकर माला गूथी जाती है सेम उसी तरह इसमे क्रम बनता है

पदक्रम-  १ २ ६ ५|

              २ ३ ५ ४|

              ३ ४ ४ ३|

              ४ ५ ३ २|

              ५ ६ २ १|


  अ॒ग्निम् ई॒ळे॒ र॒त्न॒ऽधात॑मम् होता॑रम् | ई॒ळे॒ पु॒रःऽहि॑तम् होता॑रम् ऋ॒त्विज॑म्| पु॒रःऽहि॑तम् य॒ज्ञस्य॑ य॒ज्ञस्य॑ पु॒रःऽहि॑तम्|....

  इस तरह से


(३.) शिखापाठ


पदक्रम-  १ २| २ १ | १ २ ३| 

              २ ३| ३ २ | २ ३ ४|

              ३ ४| ४ ३ | ३ ४ ५|

              ४ ५| ५ ४ | ४ ५ ६|

              

(४.) ध्वज पाठ

     

यह क्रम पाठ की तरह ही होता है।       

पदक्रम-  १ २ २ ३ ३ ४ 

              ३ ४ २ ३ १ २|

              ४ ५ ५ ६ ६ ७

              ६ ७ ५ ६ ४ ५|  


 (५.) दण्डपाठ

    

पदक्रम- १ २| २ १| १ २| २ ३ | ३ २ १||     

             २ ३| ३ २| २ ३| ३ ४ | ४ ३ २||

             इस तरह से

             

(६.)  रथ पाठ

        

पदक्रम-   १ २ ४ ५| 

               १ २ ५ ४|

               १ २ २ ३|

               ४ ५ ५ ४|

               ३ ४ ६ ७|

               ३ ४ ७ ६|

               ३ ४ ४ ५|  इत्यादि

               

(७.)  घनपाठ


पदक्रम- १ २| २ १| १ २ ३| ३ २ १| 

             १ २ ३| २ ३| ३ २| २ ३ ४| ४ ३ २|

             २ ३ ४| ३ ४| ४ ३| ३ ४ ५| ५ ४ ३| इत्यादि


 (८.) लेखापाठ


       पदक्रम-  १ २  २ १  १ २| २ ३ ४  ४ ५ २   २ ३  ३ ४ इत्यादि


मित्रों ! इस तरह से ११ तरह के पाठ है जिनका गुरुकुल मे

ब्रह्मचारी पाठ करते हैं । इससे वेद मन्त्र सुनने मे कर्णप्रिय लगते हैं और विद्यार्थी मन्त्रों को याद भी कर लेते  हैं।


जब विदेशी मुसलमान आक्रान्ताओं ने भारत के गुरुकुल नष्ट करने शुरु किये तो विद्वान् ब्राह्मणों ने  बहुत कष्ट सहकर वेदों के पाठ को आज तक सुरक्षित रखा। इसलिए वेदों में आज तक कोई मिलावट नही हो पायी।


जो दो वेद पढे, उसे द्विवेदः (द्विवेदी), जो तीन तरह के पाठ का अभ्यास करते हैं, उनको त्रिपाठी । तीन वेद को पढ़ने वाले को त्रिवेदः (त्रिवेदी) । जो चारों वेद पढे, उनको  चतुर्वेदः (चतुर्वेदी) कहते हैं ।  इस तरह से उस समय उपाधि दी जाती थी। संकलनकर्ता :-- योगाचार्य डॉक्टर प्रवीण कुमार शास्त्री


 आज भी जो लोग इन उपाधि को लगाते हैं, उनके पूर्वज वैसे ही वेदपाठ करते थे, किंतु आजकल यह लोग केवल नाम मात्र की उपाधि लगाते हैं । वेदों के पाठ को नहीं जानते हैं ।


योगाचार्य डॉ. प्रवीण कुमार शास्त्री