Dr. Praveen Kumar Shastri's Album: Wall Photos

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☀ || वेद वाणी || ☀

सभाध्यक्ष कैसा हो, इस विषय का उपदेश इस मन्त्र में किया है।

"आ नो॑ अग्ने र॒यिं भ॑र सत्रा॒साहं॒ वरे॑ण्यम्। विश्वा॑सु पृ॒त्सु दु॒ष्टर॑म्॥"
( ऋग्वेद १/७९/८)

शब्दार्थ – हे (अग्ने) दान देने वा दिलानेवाले सभाध्यक्ष! आप (नः) हम लोगों के लिये (विश्वासु) सब (पृत्सु) सेनाओं में (सत्रासाहम्) सत्य का सहन करते हैं जिससे उस (वरेण्यम्) अच्छे गुण और स्वभाव होने का हेतु (दुष्टरम्) शत्रुओं के दुःख से तरने योग्य (रयिम्) अच्छे द्रव्यसमूह को (आभर) अच्छी प्रकार धारण कीजिये॥

भावार्थ –मनुष्यों को सभाध्यक्ष आदि के आश्रय और अग्न्यादि पदार्थों के विज्ञान के विना सम्पूर्ण सुख प्राप्त कभी नहीं हो सकता॥

ऋग्वेदभाष्यम्
महर्षि दयानन्द सरस्वती