सौरभ देव's Album: Wall Photos

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भारतगौरवखण्डम् - 25

धरित्रीमुद्रिकामध्ये रत्नरूपं हि भारतम्।
जगतः सकला शोभा हता जाता ह्यनेन च॥

गङ्गाया निर्मलं तोयं राजते रजतं यथा।
तेनैव सिश्चिता रम्या मृत्तिका चन्दनायते॥

छत्रायते नगेशश्च पयोधिः किंकरायते।
सुमेखलायते विन्ध्यो रविश्च दर्पणायते॥

ग्रामग्रामनगर्यश्च ह्युपगङ्गं वसन्ति याः।
प्रहसन्ति सदा स्वर्गं गौरवेण मुदान्विताः॥

सुरम्ये जाह्नवीतीरे धनधान्यसमन्वितः।
नौरिव भवसिन्धूनामुन्नावश्चादितः स्मृतः॥

- डॉ0 देवीसहाय पाण्डेय ‘दीप’


हिन्दी-पद्यानुवाद- 25

मुद्रिका-मध्य महिमण्डल की, भारत ज्यों जड़ा नगीना है।
सम्पूर्ण सृष्टि की शोभा को, इसने निज छवि से छीना है॥

गंगा में बहता उज्ज्वल जल, छवि चाँदी की खो जाती है।
उससे सिंचित पावन मिट्टी, चन्दन-जैसी हो जाती है ॥

सागर-किंकर पद धोता है, गिरिराज सुछत्र लगाता है।
मेखला बन वर विन्ध्याचल, रवि दर्पण दिव्य दिखाता है॥

गंगा का पावन पुलिन जहाँ पुर ग्राम-समूह निवास करें।
निज गुण-गौरव सम्पत्ति सहित अमरावति का उपहास करें॥

गंगा के ही सुन्दर तट पर, धन-धान्य-युक्त गौरव-प्रधान।
उन्नाव नाम का जनपद है, भव-सिन्धु मध्य नौका समान॥

- डॉ0 देवीसहाय पाण्डेय ‘दीप’