Bishwanath kumar Rastrawadi's Album: Wall Photos

Photo 4 of 4 in Wall Photos

।। ओ३म् ।।

।।वेद के अनुसार ईश्वर के यथार्थ स्वरूप की व्याख्या।।

(साकारवाद, अवतारवाद, मूर्ति पूजा खंडन)

(भाग :- १)

वेदों में ईश्वर को सच्चिदानंद स्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी दयालु, अजन्मा, अनन्त, निर्विकार, पापरहित, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र, पूर्ण, नियामक और सृष्टिकर्ता आदि संज्ञा से वर्णित किया है।
जैसा कि ॠषि दयानंद ने आर्यसमाज के दूसरे नियम में प्रतिपादन किया है।
यजुर्वेद अध्याय ४० में पूर्ण रूप से ईश्वर के स्वरूप का वर्णन किया है। जैसा कि --

स पर्य्यागाच्छुक्रमकायमब्रणमस्नाविरशुद्धमपापविद्धम्
कविर्मनीषी परिभूः स्वयंभूर्याथातथ्यतोSर्थान्व्यदधाच्छाश्वतीभ्यः समाभ्यः।।
यजु० ४०। ८।।
अर्थात् -- हे मनुष्यों! जो ब्रह्म (शुक्रम्) शीघ्रकारी सर्वशक्तिमान (अकायम्) स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर से रहित (अब्रणम्) छिद्ररहित और नाहि छेद करने योग्य (अस्नाविरम्) नाडी आदि के साथ सम्बन्ध रूप बन्धन से रहित (शुद्धम्) अविद्या आदि दोषों से रहित होने से सदा पवित्र और (अपापविद्धम्) जो पापयुक्त, पापकारी और पाप से प्रीति करने वाला कभी नहीं होता (परिअगात्) सब और से व्याप्त है जो (कविः) सर्वज्ञ (मनीषी)सब जीवों के मनों की वृत्तियों को जानने वाला (परिभूः) दुष्ट पापियों का तिरस्कार करनेवाला और (स्वयंभूः) आनादि स्वरूप जिसके संयोग से उत्पत्ति, वियोग से विनाश, माता-पिता, गर्भवास, जन्म वृद्धि और मरण नहीं होते वह परमात्मा (शाश्वतीभ्य