द्वादशज्योतिर्लिङ्ग विवेचन
भाग दो
ज्योतिर्लिङ्ग मल्लिकार्जुन जी
|| ॐ नम: शिवाय || || ॐ श्री मल्लिकार्जुनाय नमः ||
भगवान आशुतोष के पवित्र माह श्रावण में मेरी हार्दिक शुभकामनाएं है कि भगवान शिव की असीम कृपा आपको , आपके परिजनों और मित्रों को प्राप्त हो। आपका प्रत्येक पल शुभ और मंगलमय हो।
धर्मों रक्षति रक्षितः जय सनातन धर्म हिन्दुत्व
वन्दे मातरम् भारत माता की जय हो जय राष्ट्रधर्म
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चीन हमारा शत्रु राष्ट्र है। चाइनीज सामानों का सम्पूर्ण बहिष्कार करें। स्वदेशी अपनायें और राष्ट्र को समृद्ध बनायें।
आवश्यक हो , तभी घर से निकले। मास्क लगाने और दिन में कई बार साबुन से हाथ धोने में लापरवाही न बरतें। जहां साबुन का उपयोग सम्भव न हो , वहीं सेनीटाइजर का उपयोग करें।
सावधानी बरतें ; यही सर्वोत्तम उपाय है।
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श्रीशैलश्रृंगे विवुधातिसंगे तुलाद्रितुंगेअपि मुदा वसन्तम् ।
तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेकं नमामि संसारसमुद्रसेतुम ।।
यह ज्योतिर्लिङ्ग आन्ध्र प्रदेश में दक्षिण के कैलाश के नाम से प्रसिद्ध श्रीशैलम पर्वत पर कृष्णा नदी के तट पर स्थित है। महाभारत, शिव पुराण तथा पद्मपुराण आदि धर्मग्रन्थों में इनकी महिमा का विस्तार से उल्लेख किया गया है।
इस ज्योतिर्लिङ्ग की कथा का उल्लेख पुराणों में इस प्रकार किया गया है:-
एक बार की बात है ,भगवान शंकर के दोनों पुत्र गणेश जी और कार्तिकेय जी अपना विवाह एक दूसरे से पहिले करने के लिये आपस में झगड़ा करने लगे । इस झगड़े को सुलझाने के लिये भगवान शंकर और माता पार्वती ने दोनों से कहा:- 'तुम दोनों में जो पूरी पृथ्वी का चक्कर पहले लगाकर आयेगा, उसका विवाह पहिले होगा ।' इस बात को सुनकर भगवान कार्तिकेय अविलम्ब पृथ्वी-प्रदक्षिणा के लिए अपने वाहन मयूर पर सवार होकर निकल पड़े किन्तु गणेश जी अपने स्थूलकाय होने एवं अपने वाहन मूषक के असक्षम होने के कारण पृथ्वी-प्रदक्षिणा कर सकने में असमर्थ थे। गणेश भगवान की बुद्धि तेज थी। अत: उन्होंने शास्त्र सम्मत उपाय किया और अपने माता-पिता की सात प्रदक्षिणा कर पृथ्वी-प्रदक्षिणा का लक्ष्य सम्पूर्ण किया। शास्त्रों मे उल्लेख है:-
पित्रोश्च पूजनं कृत्वा प्रक्रान्तिं च करोति य: ।
तस्य वै पृथिवीजन्यं फलं भवति निश्चितम् ।।
भगवान कार्तिकेय जब पृथ्वी-प्रदक्षिणा कर वापस लौटे, तब तक भगवान गणेश ' सिद्धि ' और ' बुद्धि ' से विवाह करने के बाद 'क्षेम' और 'लाभ' नामक दो पुत्रों के पिता बन चुके थे। यह सब जानकर कार्तिकेय जी अत्यन्त रुष्ट हुए और क्रौञ्च पर्वत पर चले गये। माता पार्वती जी व्यथित होकर वहां उन्हें मनाने पहुँची। पीछे भगवान शंकर वहां पहुंच कर ज्योतिर्लिङ्ग के रूप प्रकट हुए, जहां इनकी अर्चना मल्लिका-पुष्पों से की गई। अत: इस ज्योतिर्लिङ्ग को मल्लिकार्जुन के नाम से पुकारा गया।
एक कथा और बताई जाती है:-
इस शैलपर्वत के निकट किसी समय राजा चन्द्रगुप्त की राजधानी थी। किसी विशेष विपत्ति के निराकरण के लिये उनकी एक कन्या महल से निकलकर इस पर्वतराज की शरण में आकर यहाँ के गोपों के साथ निवास करने लगी। उस कन्या के पास एक श्यामवर्णी और सुन्दर शुभलक्षणा गाय थी। उस गाय का दूध कोई रात को चोरी से दुह ले जाता था। एक दिन संयोगवश उस कन्या ने उस व्यक्ति को रात में चोरी से दूध दुहते हुए देखा और दौड़ा लिया,किन्तु वहां जाकर देखा तो वहां शिवलिंग के अलावा कुछ भी नही पाया। कुछ अन्तराल के पश्चात उस राजकन्या ने वहां उस शिवलिंग का विशाल मन्दिर बनवाया। यही शिवलिंग मल्लिकार्जुन के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यहां प्रतिवर्ष शिवरात्रि के महापर्व पर विशाल मेला का आयोजन होता है।
( क्रमशः अगले अंक में महाकाल ज्योतिर्लिंग )
सन्तोष शुक्ला 'दीपक'