जब समुद्र पर सेतु बन रहा था तो सभी भालू बानर अपने अपने काम मे लगे थे कोई पत्थर ला रहा था तो कोई उस पर "श्री राम" लिख रहा था हनुमान अंगद सुग्रीव नल नील जामवंत सभी अपने मालिक के काम मे लीन थे।
मेरे राम से रहा नही गया उन्होंने एक पत्थर उठाया और पानी मे डाला.....
अरेरेरेररे ये क्या पत्थर तो डूब गया प्रभू ने चारों ओर देख कोई देख नही रहा था, कुटिल मुस्कान के साथ प्रभु ने राहत की सांस ली। फिर अवधेश ने दुबारा पत्थर उठाया पानी में छोड़ा "दूसरा पत्थर भी डूब गया"।
प्रभू राम ने फिर चारों ओर देखा पर अबकी चापाल हनुमान जी दृष्टि से बच नही पाये, हृदय की विवशता हनुमान से कही