पुत्र प्राप्ति हेतु यज्ञ के लिए महाराज दशरथ ने समस्त भार अपने कुलगुरु महर्षि वशिष्ठ पर छोड़ रखा था ।
उस रामायण काल में शूद्रों का कितना सम्मान होता था इस श्लोक से झलकता है । यह श्लोक श्रीमदवाल्मीकीयरामयाण के बालकांड के त्रयोदशः सर्ग - तदन्तर वशिष्ठ जी ने आर्य सुमंत को बुलाकर कहा - इस पृथ्वी पर जो जो धार्मिक राजा , ब्राह्मण ,क्षत्रिय , वैश्य और सहस्त्र शुद्र हैं ,उन सबको इस यज्ञ में आने के लिए निमंत्रण भेजो ।
आज अनावश्यक ही शूद्रों को हिंदुओं से अलग करने की कोशिश की जा रही है ।यह कह कर कि वेद वाक्य शूद्रों के कानमें पड जाते थें तो शीशा पिघल कर कानो में डाल दिया जाता था ।शूद्रों की छाया से लोग दूर रहते थें । मंदिरों में शूद्रों का प्रवेश वर्जित था । चित्र में श्लोक प्रमाण है जिसका अर्थ ऊपर लिखा है ।
जय श्री राम
#मैंवंशजप्रभुरामका