दुर्गेश्वर नाथः 's Album: Wall Photos

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ॐश्री_गुरुवे_नमः

#ॐ_श्रीचन्द्रमौलिश्वराय_नमः

#जय_मां_जगतजननी_आदिशक्ति

#पञ्चपुरी

#अयोध्या_मथुरा_माया_काशी_काञ्ची_अविन्तका ।

#पुरी_द्वारावती_चैव_सप्तैता_मोक्षदायिका: ।।

वर्तमान समय में हरिद्वार नाम से प्रसिद्ध है। परंतु शास्त्रोक्त नाम मायापुरी है। इस क्षेत्र का नाम मायापुरी इस लिए है कि इसकी अधिष्ठात्री भगवती मायादेवी हैं इस मायापुरी क्षेत्र में पुरातन काल से ही तीन शक्ति पीठ इस प्रकार से स्थित हैं इस त्रिकोण के मध्म में पूर्वाभिमुख स्थित होने पर वाम पाशर्व अर्थात उतर दिशा में क्षेत्र कि शीतला देवी अौर पूर्वी कोण में चण्डी देवी स्थित है। इस त्रिकोण के उतर दिशा में क्षेत्र कि अधिष्ठात्री भगवती मायादेवी अौर दक्षिण पाशर्व में भगवती माया के अधिष्ठाता भगवान शिव श्री दक्षेश्वर महादेव के रूप में स्थित है। यह मन्दिर जिन भगवती मायादेवी का है उनका वेदान्त दर्शन अनिर्वचनीय (#मिथया-रुप ) माया से कोई संबंध नहीं है। ये तो परब्रह्म परमात्मा भगवान् शिव से अभिन्न उनकी ही स्वरुपभूता परा शक्ति हैं ।

इनके विषय में भगवान् आद्य शंकराचार्य ने कहा है।

#शिवः_शक्त्यायुक्तो_यदि_भवति_शक्त: #_प्रभवितु,

#न_चेदेवं_देवो_न_खलु_कुशलः #_स्पन्दितुमपि ।

#अतस्त्वमाराध्यां_हरिहर_विरिञ्वादिभिरपि,

#प्रणन्तुं_स्तोतुं_वा_कथमकृतं_पुण्यःप्रभवति ।।

प्रजापति दक्ष ने एक समय कनखल नामक सुप्रसिद्ध तीर्थ सीन में बहुत बडा #वृहस्पतिसव नामक एक यज्ञ प्रारंभ किया । उसमें उन्होंने समस्त ऋषियों, मुनिओं,देवताओं, यक्षों,किन्नरों,अपनी समस्त कन्याओं,जामाताओं,असुरों ओर मनुष्यों को आमंत्रित किया। परंतु पूर्व वैर के कारण द्वेषवश पराशक्ति भगवती महामाया सती अौर परब्रह्म परमात्मा भगवान् शिव को आमंत्रित नहीं किया। इस यज्ञ का बहुत प्रचार किया ।अतः लोला विग्रह-धारणी महामाया सती ने भी इसका समाचार सुना। भगवान् शिव तथा पराशक्ति भगवती सती के प्रति द्वेष रखकर प्रजापति दक्ष ने जो यज्ञ आरम्भ किया था। उसका भयंकर दण्ड उन्हें देने के लिये भगवती सती ने उस यज्ञ में जाने का निश्चय किया अौर भगवान शिव से उसके लिये आज्ञा मांगी। भगवती सती के समस्त तर्कों को सुनकर भगवान शिव ने कहा कि हे देवी ! अगर तुम्हारा आग्रह हि है तो तुम यज्ञ देखने अौर योग्य कर्मफलों के यज्ञ उम्पतिं की बनने के लिये पिता के घर जाओ। महामाया सती जी दक्ष प्रजापति के यज्ञ स्थल कनखल में पहुँची तो दक्ष ने उनका कोई स्वागत सत्कार नहीं किया। अौर महामाया सती जी ने यज्ञ मण्डल में देखा तो भगवान शिव का यज्ञ भाग भी नहीं दिखलाई दिया । इसका कारण पूछने पर प्रजापति दक्ष ने महामाया सती जी को उत्तर दिया । जिसे सुन कर महामाया सती जी को प्रजापति दक्ष से इतनी घृणा हुई कि उन्होंने दक्ष से सम्बंधित अपने शरीर को भी रखना उचित नहीं समझा ।इसका वर्णन #भागवत तथा #शिव_पुराण में बडे सुन्दर ढंग से किया गया है।
महामाया सती जी ने कहा कि जिस समय भगवान शिव आपके साथ मेरा सम्बन्ध दिखलाते हुये हंसी मे मुझे "#दाक्षायणी"(दक्षकुमारी) के नाम से पुकारेगें। उस समय मुझे बड़ी लज्जा अौर खेद होगा।इसलिये उसके पहले हि मैं आपके अंग से उत्पन्न इस शवतुल्य शरीर को त्याग दुंगी ।मुझसे अब यह अपमान नहीं सहा जायेगा। दक्ष प्रजापति से ऎसा कहकर महामाया सती उस यज्ञ कुण्ड से उत्तर दिशा में अर्थात वर्तमान कनखल में जहां यज्ञ मण्डप था वहां ऊपर दिशा में स्थित वर्तमान मायादेवी मन्दिर के स्थान में जाकर बैठ गयी।
महामाया सती जी ने किस प्रकार योग क्रियाओं के द्वारा अपने शरीर का त्याग किया इसका वर्णन #भागवत तथा #शिवपुराण में मिलता। मायाक्षेत्र कि अधिष्ठात्री मायादेवी अौर दक्षेश्वर महादेव के दर्शन करने से आठों प्रकार कि सिद्धियां प्राप्त होगीं। हे प्रजाधीश ! जो अल्पज्ञ मनुष्य हमारे दर्शन किये बिना हि तीर्थपटन करेगें उनकी यात्रा निष्फला होगी।
भगवान् शिव के यहाँ आकर उस शरीर को उठाकर ले जाने तक वह शरीर वहीं पर स्थित रहा।जब भगवान शिव उस शरीर को वहां से उठाकर ले गये तब भगवान विष्णु के चक्र द्वारा कटकर महामाया सती के अंग-प्रत्यंगों के गिरने से इक्यावन शक्तिपीठ अौर उनसे सम्बंधित भैरव प्रकट हुए। अतः महामाया सती का शरीर किसी भी प्रकार से क्षत-विक्षत हुये बिना अखण्ड रुप से जहां रहा वही सिद्ध मायापुरी (हरिद्वार) का मायादेवी मन्दिर शक्ति पीठ से हि समस्त शक्ति पीठों की उत्पति हुई ।ओर दक्ष प्रजापति के समस्त कार्यकलापों क्रुद्ध स्वयं भगवान्‌ शिव हि यहां #आनन्द_भैरव के रुप में विराजमान हैं।

विशेष :-१ बिल्वक महादेव जहां मां पार्वती ने तपस्या कि।
२ आदिशक्ति जगतजननी मां सुरेश्वरी देवी जहांदेवराज इन्द्र ने मां कि आराधना कि।

जय हो मोक्षदायिनी मां गंगें।

दुर्गेश्वर नाथः