अपनी आदतों के अनुसार चलनें में इंसान से उतनी गलतियां नहीं होती हैं,जितना दुनिया का ख्याल और लिहाज़ रखते रखते हो जाती हैं,कभी-कभी हम दुनिया और सामज की सोचते सोचते अपने ही खुशियों का और इच्छाओं का गला घोंट देते हैं।और पछतावा हमें तब होता है,जब वक़्त काफी आगे निकल जाता है।