कोरोना काल से पूर्व अंतराष्ट्रीय पटल पर एक बहस ने जोर पकड़ा थाकि ....
चीनी कंपनी हुवावे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है। इसे बैन किया जाए, हुवावे ख़ुफ़िया जानकारी चुराती है ...!
इसे समझने के लिए हमें थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा। ज्यादा दूर नहीं, बस माओ काल तक ही सफर करना है। तो बात दरसअल यह है कि माओ काल के दौरान चीन में एक कार्यक्रम चलाया गया था ......
"कल्चर रेवोल्यूशन" काफी खूनी मंजर भरा कार्यक्रम रहा था। इसकी अवधि नौ-दस बरस रही थी। इस कार्यक्रम में कई सेग्मेंट आयोजित किए गए। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय के मद्देनजर ....!
लेकिन दो महत्वपूर्ण सेग्मेंट रहे।
पहला, रूसी लोगों से नफ़रत करें। क्योंकि वह चीन के लिए खतरनाक शैतान बन चुके थे। दूसरा, चीनियों में पागलपन की हद तक राष्ट्रवाद के बीज उतपन्न होना। इस स्थिति में अगर किसी चीनी के सम्बंध विदेश से रहते, अन्य चीनी लोग उन्हें स्पाई या देशद्रोह में लिप्त भरी नजरों से देखा जाता ...!
क्योंकि .....
माओ काल में चीनी नागरिकों के मन में यह बीज अंकुरित किया गया कि जिन लोगों ने चीन को अपने अधिकारों के लिए वंचित रखा है या बाधाएं उतपन्न की है। सभी लोग सिर्फ दुश्मन है ...!
कोस्को उर्फ़ 'चाइना ओशियन शिपिंग कंपनी' चीन की सरकारी कंपनी है। यह विदेशी व्यापर और आर्थिक सहयोग मंत्रालय के निर्देशों पर कार्यरत है। बिल क्लिंटन के राष्ट्रपति टर्म के दौरान इस कंपनी ने केलिफोर्निया के 'लांग बीच' के बंदरगाह को पट्टे उर्फ़ लीज पर लेने की कोशिश की थी। जो अमेरिकी नौ सेना द्वारा खाली किया जा रहा था। अमेरिकी कांग्रेस में जबर बहस हुई। कई लोग सुरक्षा कारणों से विरोध कर रहे थे। जबकि क्लिंटन पक्ष में थे ....!
लेकिन १९९७ में अमेरिकी दोनों सदनों में प्रस्ताव पारित करते हुए; लीज की अनुमति नहीं दी गई थी। इसके कारण बहुत चौकानें वाले तथ्य रहे। १९९६ में अमेरिकी कस्टम ने २000 से ज्यादा राइफलें बरामद की थी। जो कोस्को के जहाज से तस्करी के तहत अमेरिका भेजी गई थी ...!
इस कृत्य ने क्वाटर भर आंखे खुलने वाले चीनियों ने क्लिंटन प्रशासन की आंखे फाड़कर रख दी। इसके बाद क्लिंटन ने फैसला किया कि अब इस केस से सम्बंधित कोई भी जानकारी सार्वजनिक नहीं कि जाएगी ....!
अब चीन के राष्ट्रवाद पर बातचीत, करोड़ो चीनी पर्यटक हर साल दुनिया भर के देशों में भ्रमण करते है ...!
१९९६ में अस्सी हजार से ज्यादा चीनी नागरिकों ने करीब तेईस हजार डेलिगेशन का हिस्सा बनकर अमेरिका की यात्रा की। इन डेलिगेशन ने अमेरिका में बारीकी से ऑब्जर्वेशन किया और किसी न किसी प्रकार के डेटा को इकट्ठा किया ....!
चीनी वैज्ञानिक डेलिगेशन अमेरिका के परमाणु हथियार संयंत्र और राष्ट्रीय हथियार प्रयोगशाला में घुल मिलकर, अमेरिकी वैज्ञानिक डेटा चुरा लिया। उन्ही दिनों अमेरिका के विश्वविद्यालयों में एक लाख से ज्यादा चीनी विद्यार्थी आए। डिग्री लेकर अमेरिका में रहे। कुछ चीन वापस गए। और अपने देश के लिए डेटा जानकारी के मद्देनजर सुनहरा अवसर क्रिएट करते रहे' ...!
दरसअल चीन द्वारा यह चोरियां १९७० से शुरू हो चली थी। लेकिन १९९० का दौर ज्यादा महत्वपूर्ण रहा था। चीनियों ने अमेरिका की अंतरिक्ष तकनीक सम्बंधी डेटा भी डकार लिया। दरसअल चीनी अमेरिका के वैज्ञानिक व हथियार सम्बंधी डिपार्टमेंट के साथ व्यापक रिलेशन स्थापित कर लिए थे। बैलेस्टिक मिसाइल, डब्ल्यू ८८, ट्राइडेंट डी-५ अंतरिक्ष हथियार के साथ अन्य जानकारियां भी। इसी वक्त चीनियों ने अमेरिका से ऐसा डेटा चुराया जिसे अमेरिका ने सार्वजनिक नहीं किया ...!
डब्ल्यू ८८, डेटा के चोरी की जानकारी की खबर अमेरिका १९९५ में लगी। और अमेरिका ने पाया कि चीन १९७० से चोरियां कर रहा है। उधर चीन इन गुप्त डेटा के साथ खुद विकसित करता चला गया ...!
अमेरिका से चीनियों ने कई मिसाइल सिस्टम, एफ १४, १५, १६, १७, के फॉर्मूले ...!
चीनियों ने अमेरिका को असल जलील १९९६ में ताइवान संकटकाल के समय सीएसएस-६ मिसाइलें अमेरिका के ऊपर दागकर किया। बाद में मिसाइल परीक्षण का हवाला दिया ...!
अमेरिका के फॉर्मूले चुराकर, उन्हें खुद के यहाँ विकसित करके, अमेरिका पर तान दिया। अमेरिका से न निगलता बना, न उगलता ...!
चीन इससे दो कदम आगे बढ़ते हुए, इन हथियारों की तकनीक को ईरान, पाकिस्तान, लीबिया, सीरिया, दक्षिण कोरिया समेत अन्य देशों तक पहुँचा दी ...!
थोड़े दिन पहले, एक खबर पढ़ी थी। कि कोविड-१९ के जन्मदाता वुहान लैब से अमेरिकी सरकारी कंपनी जुड़ी हुई है। जो इसके शोध में मदद कर रही थी ...!
ख़ैर .....
चीन अन्य देशों की ख़ुफ़िया डेटा जानकारी के लिए कई हथकण्डे अपनाता है। जहाँ सम्भव हो, चीनी नागरिकों के जरिये डेटा इक्कठा करता है। बाकी पप्पू-पप्पी गैंग तो है ही ....!
याद करें ....!
२०१८-२०१९ में भारत देश में राफेल रोना यूँ ही थोड़े शुरू किया गया था। उसकी थीम २०१७ चीनी दूतावास में रखी गई थी। क्योंकि २०१४ के बाद से चीन को किसी भारतीय रक्षा सौदों की जानकारी नहीं मिल पा रही थी। दरसअल मोदी सरकार ने दल्ला गिरी खत्म कर दी। चीन बेचैन हो चला, कि राफेल का कौनसा मॉडल है। जो भारत खरीद रहा है ...!
इसके लिए भारत के पप्पू को चुना कि आप राफेल डिटेल निकलवाएं। पप्पू गैंग ने खूब राफेल की डिटेल के लिए खूब हथकंडे अपनाएं .....
लेकिन ये मोदी है मोदी ...!
ज्यादा जानकारी नहीं दी ....!
जन्म से भारतीय नागरिक है। लेकिन कर्म से चीनी बने पड़े लोगों द्वारा काफी याचिकाएं डाली गई। इसलिए चीन को अपने नागरिक भेजने की कतई आवश्यकता नहीं हुई ...!
चीन अभी भी चोरियों में व्यस्त है ...!
रुका नहीं है ....!
चीन ने अंतरिक्ष में आर्थिक कॉरिडोर बनाने का ब्लू प्रिंट रखा है। देखना होगा कि .....
यह कॉरिडोर अमेरिका की कितनी आँखे खोलता हुआ, भौचक्का करने वाला होगा ....!