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कांग्रेस के जुमले "जय जवान - जय किसान" की वास्तविकता
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युद्ध क्षेत्र में असाधारण वीरता दिखाने वाले वीरो को परमवीर चक्र, महावीर चक्र, वीर चक्र, आदि से सम्मानित किया जाता है, लेकिन क्या आपको पता है कि- परमवीर चक्र, महावीर चक्र, वीर चक्र आदि पाने वालों को सरकार क्या अतिरिक्त सुविधा देती थी ?

आजादी से पहले अंग्रेज असाधारण वीरता का प्रदर्शन करने वाले वीर सैनिको को जंगी इनाम दिया करते थे. उसमे सैनिक को जमीन तथा 50 रूपए महीना भत्ता दिया जाता था. 1948 में जमींन देना बंद कर दिया गया और 50 रूपए महीना भत्ता जारी रहा.

वीर सैनिको को यह 50 रूपय महीना का भत्ता कई दशकों तक यूँ ही चलता रहा. सूबेदार मेजर बाना सिंह को 1988 में सियाचिन की पहाड़ियों से घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए बहादुरी के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.

पुरस्कार में उन्हें एक लाख रुपए नक़द मिले. इसके साथ उनकी तनख़्वाह में 50 रुपए का मासिक भत्ता जुड़ गया. उनका कहना था कि - उस वक्त सर्विस में होने के कारण हम कुछ नहीं कह सकते थे और न ही कहीं प्रदर्शन भी नहीं कर सकते थे.

इसी प्रकार आईपीकेएफ़ सदस्य रहे मेजर जनरल शिवानन सिंह को श्रीलंका में बहादुरी के लिए 1988 में वीर चक्र से सम्मानित किया है. वो बताते हैं, "मुझे 1988 में 120 रुपये भत्ते के तौर पर मिलने शुरू हुए. कुछ साल के बाद वो बढ़ा तो 300 रुपये हुआ.

शिवानन सिंह का कहना था कि- आप कह रहे हैं कि आप इज़्ज़त बढ़ा रहे हैं लेकिन 120 रुपये में आप क्या इज़्ज़त बढ़ा रहे हैं ? उनका कहना था कि तनख़्वाह में 50 से 120 रुपए जुड़ना, वीरता का सम्मान बढ़ाना नहीं बल्कि मजाक उडाना था है.

आजादी 50 साल ज्यादा से बाद तक यह चलता रहा. कारगिल युद्ध के बाद सैनकों को सम्मान देते समय 2000 में अटल सरकार ने इस भत्ते को 50 रूपय प्रतिमाह से बढ़ाकर 5000 रूपय प्रतिमाह किया था. और वीरों के सम्मान को कुछ महत्त्व दिया.

2015 में मोदी सरकार ने वीर सैनकों को जो उचित सम्मान देना शुरू किया है उसको देखकर हम आम भारतीय भी थोडा गर्व महेसूस कर सकते हैं. परमवीर चक्र विजेताओं का यह वीरता भत्ता बढ़कर अब 20,000 रुपये प्रति माह हो गया है.

अब अशोक चक्र जीतने वालों का या भत्ता 12,000. महावीर चक्र विजेताओं का 10,000, कीर्ति चक्र विजेताओं का 9,000, वीर चक्र विजेताओं को 7,000 रुपये है. इसी तरह शौर्य चक्र, मिलिट्री क्रॉस और अन्य विजेताओं के भत्ते को भी बढ़ाये गए हैं.

कांग्रेस कई दशकों से "जय जवान -जय किसान" का नारा लगाती आ रही है. जवानो और किसानो के लिए कांग्रेस सरकार ने अब तक क्या किया है यह तो सबको पता ही है. न जवानो को आधुनिक हथियार मिलते थे और न ही किसान को आधुनिक तकनीक.

किसान अपने निजी संसाधनों की सहायता से देश का पेट भरते रहे और जवान साधारण हथियारों से पैटर्न टैंको का सामना कर देश की रक्षा करते रहे. नेताओं को इतने पर भी चैन नहीं था वो सेना की बहादुरी का क्रेडिट भी अपनी नेता को दे दिया करते थे.

और हाँ,. पहले युद्ध क्षेत्र में वीरगति को प्राप्त करने वाले सैनिको के पार्थिव शरीर उनके घर तक नहीं आते थे बल्कि वही खुर्द-बुर्द कर दिए जाते थे. उनके पार्थिव शरीर परिजनों तक पहुंचाने की व्यवस्था भी अटल सरकार ने की थी