Sanjay Oza's Album: Wall Photos

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#एग्नेस_गोंक्झा_बोज़ाझियू_ अर्थात #मदर_टेरेसा का जन्म २६ अगस्त १९१० को स्कोप्जे,मेसेडोनिया में हुआ था और बारह वर्ष की आयु में उन्हें अहसास हुआ कि “उन्हें ईश्वर बुला रहा है”२४ मई १९३१ को वो कलकत्ता आईं और फ़िर यहीं की होकर रह गईं उनके बारे में इस प्रकार की सारी बातें लगभग सभी लोग जानते हैं,लेकिन कुछ ऐसे तथ्य,आँकड़े और लेख हैं जिनसे इस शख्सियत पर सन्देह के बादल गहरे होते जाते हैं उन पर हमेशा वेटिकन की मदद और मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी की मदद से “धर्म परिवर्तन” का आरोप तो लगता ही रहा है,लेकिन बात कुछ और भी है,जो उन्हें “दया की मूर्ति”,“मानवता की सेविका”,“बेसहारा और गरीबों की मसीहा”आदि वाली “लार्जर दैन लाईफ़”छवि पर ग्रहण लगाती हैं और मजे की बात यह है कि इनमें से अधिकतर आरोप(या कहें कि खुलासे)पश्चिम की प्रेस या ईसाई पत्रकारों आदि ने ही किये हैं,ना कि किसी हिन्दू संगठन ने,जिससे संदेह और भी गहरा हो जाता है (क्योंकि हिन्दू संगठन जो भी बोलते या लिखते हैं उसे तत्काल सांप्रदायिक ठहरा दिये जाने का “रिवाज” है)बहरहाल,आईये देखें कि क्यों इस प्रकार के “संत” या “चमत्कार” आदि की बातें बेमानी होती हैं(अब ये पढ़ते वक्त यदि आपको हिन्दुओं के बड़े-बड़े और नामी-गिरामी बाबाओं,संतों और प्रवचनकारों की याद आ जाये तो कोई आश्चर्यजनक बात नहीं होगी)यह बात तो सभी जानते हैं कि धर्म कोई सा भी हो,धार्मिक गुरु/गुरुआनियाँ/बाबा/सन्त आदि कोई भी हो बगैर “चन्दे” के वे अपना कामकाज(?)नहीं फ़ैला सकते हैं उनकी मिशनरियाँ,उनके आश्रम, बड़े-बड़े पांडाल,भव्य मन्दिर,मस्जिद और चर्च आदि इसी विशालकाय चन्दे की रकम से बनते हैं...जाहिर है कि जहाँ से अकूत पैसा आता है वह कोई पवित्र या धर्मात्मा व्यक्ति नहीं होता, ठीक इसी प्रकार जिस जगह ये अकूत पैसा जाता है,वहाँ भी ऐसे ही लोग बसते हैं आम आदमी को बरगलाने के लिये पाप-पुण्य, अच्छाई-बुराई,धर्म आदि की घुट्टी लगातार पिलाई जाती है,क्योंकि जिस अंतरात्मा के बल पर व्यक्ति का सारा व्यवहार चलता है,उसे दरकिनार कर दिया जाता है पैसा(यानी चन्दा) कहीं से भी आये,किसी भी प्रकार के व्यक्ति से आये,उसका काम-धंधा कुछ भी हो,इससे लेने वाले “महान”(?) लोगों को कोई फ़र्क नहीं पड़ता उन्हें इस बात की चिंता कभी नहीं होती कि उनके तथाकथित प्रवचन सुनकर क्या आज तक किसी भी भ्रष्टाचारी या अनैतिक व्यक्ति ने अपना गुनाह कबूल किया है...?
क्या किसी पापी ने आज तक यह कहा है कि “मेरी यह कमाई मेरे तमाम काले कारनामों की है,और मैं यह सारा पैसा त्यागकर आज से सन्यास लेता हूँ और मुझे मेरे पापों की सजा के तौर पर कड़े परिश्रम वाली जेल में रख दिया जाये..”वह कभी ऐसा कहेगा भी नहीं, क्योंकि इन्हीं संतों और महात्माओं ने उसे कह रखा है कि जब तुम अपनी कमाई का कुछ प्रतिशत “नेक” कामों के लिये दान कर दोगे तो तुम्हारे पापों का खाता हल्का हो जायेगा यानी, बेटा..तू आराम से कालाबाजारी कर,चैन से गरीबों का शोषण कर,जम कर भ्रष्टाचार कर, लेकिन उसमें से कुछ हिस्सा हमारे आश्रम को दान कर…है ना मजेदार धर्म…?
बहरहाल बात हो रही थी मदर टेरेसा की,मदर टेरेसा की मृत्यु के समय सुसान शील्ड्स को न्यूयॉर्क बैंक में पचास मिलियन डालर की रकम जमा मिली,सुसान शील्ड्स वही हैं जिन्होंने मदर टेरेसा के साथ सहायक के रूप में नौ साल तक काम किया,सुसान ही चैरिटी में आये हुए दान और चेकों का हिसाब-किताब रखती थीं जो लाखों रुपया गरीबों और दीन-हीनों की सेवा में लगाया जाना था,वह न्यूयॉर्क के बैंक में यूँ ही फ़ालतू पड़ा थ...मदर टेरेसा को समूचे विश्व से,कई ज्ञात और अज्ञात स्रोतों से बड़ी-बड़ी धनराशियाँ दान के तौर पर मिलती थीं...अमेरिका के एक बड़े प्रकाशक रॉबर्ट मैक्सवैल,जिन्होंने कर्मचारियों की भविष्यनिधि फ़ण्ड्स में ४५० मिलियन पाउंड का घोटाला किया,ने मदर टेरेसा को १.२५ मिलियन डालर का चन्दा दिया मदर टेरेसा मैक्सवैल के भूतकाल को जानती थीं हैती के तानाशाह जीन क्लाऊड डुवालिये ने मदर टेरेसा को सम्मानित करने बुलाया मदर टेरेसा कोलकाता से हैती सम्मान लेने गईं,और जिस व्यक्ति ने हैती का भविष्य बिगाड़ कर रख दिया,गरीबों पर जमकर अत्याचार किये और देश को लूटा,टेरेसा ने उसकी “गरीबों को प्यार करने वाला”कहकर तारीफ़ों के पुल बाँधे...!
मदर टेरेसा को चार्ल्स कीटिंग से १.२५ मिलियन डालर का चन्दा मिला,ये कीटिंग महाशय वही हैं जिन्होंने “कीटिंग सेविंग्स एन्ड लोन्स”नामक कम्पनी १९८० में बनाई थी और आम जनता और मध्यमवर्ग को लाखों डालर का चूना लगाने के बाद उसे जेल हुई थी...अदालत में सुनवाई के दौरान मदर टेरेसा ने जज से कीटिंग को “माफ़”(?) करने की अपील की थी,उस वक्त जज ने उनसे कहा कि जो पैसा कीटिंग ने गबन किया है क्या वे उसे जनता को लौटा सकती हैं ताकि निम्न-मध्यमवर्ग के हजारों लोगों को कुछ राहत मिल सके,लेकिन तब वे चुप्पी साध गईं...?
ब्रिटेन की प्रसिद्ध मेडिकल पत्रिका Lancet के सम्पादक डॉ.रॉबिन फ़ॉक्स ने १९९१ में एक बार मदर के कलकत्ता स्थित चैरिटी अस्पतालों का दौरा किया था उन्होंने पाया कि बच्चों के लिये साधारण “अनल्जेसिक दवाईयाँ”तक वहाँ उपलब्ध नहीं थीं और न ही “स्टर्लाइज्ड सिरिंज” का उपयोग हो रहा था जब इस बारे में मदर से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि “ये बच्चे सिर्फ़ मेरी प्रार्थना से ही ठीक हो जायेंगे…”(?)
बांग्लादेश युद्ध के दौरान लगभग साढ़े चार लाख महिलायें बेघरबार हुईं और भागकर कोलकाता आईं,उनमें से अधिकतर के साथ बलात्कार हुआ था मदर टेरेसा ने उन महिलाओं के गर्भपात का विरोध किया था, और कहा था कि “गर्भपात कैथोलिक परम्पराओं के खिलाफ़ है और इन औरतों की प्रेग्नेन्सी एक “पवित्र आशीर्वाद” है…”उन्होंने हमेशा गर्भपात और गर्भनिरोधकों का विरोध किया जब उनसे सवाल किया जाता था कि “क्या ज्यादा बच्चे पैदा होना और गरीबी में कोई सम्बन्ध नहीं है?”तब उनका उत्तर हमेशा गोलमोल ही होता था कि “ईश्वर सभी के लिये कुछ न कुछ देता है,जब वह पशु-पक्षियों को भोजन उपलब्ध करवाता है तो आने वाले बच्चे का खयाल भी वह रखेगा इसलिये गर्भपात और गर्भनिरोधक एक अपराध है”(क्या अजीब थ्योरी है…बच्चे पैदा करते जाओं उन्हें “ईश्वर” पाल लेगा…शायद इसी थ्योरी का पालन करते हुए ज्यादा बच्चों का बाप कहता है कि“ये तो भगवान की देन हैं..”,लेकिन वह मूर्ख नहीं जानता कि यह “भगवान की देन” धरती पर बोझ है और सिकुड़ते संसाधनों में हक मारने वाला एक और मुँह&hellip
मदर टेरेसा ने इन्दिरा गाँधी की आपातकाल लगाने के लिये तारीफ़ की थी और कहा कि “आपातकाल लगाने से लोग खुश हो गये हैं और बेरोजगारी की समस्या हल हो गई है” गाँधी परिवार ने उन्हें “भारत रत्न” का सम्मान देकर उनका “ऋण” उतारा भोपाल गैस त्रासदी भारत की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना है,जिसमें सरकारी तौर पर ४००० से अधिक लोग मारे गये और लाखों लोग अन्य बीमारियों से प्रभावित हुए उस वक्त मदर टेरेसा ताबड़तोड़ कलकत्ता से भोपाल आईं, किसलिये...क्या प्रभावितों की मदद करने...?
जी नहीं,बल्कि यह अनुरोध करने कि यूनियन कार्बाईड के मैनेजमेंट को माफ़ कर दिया जाना चाहिये और अन्ततः वही हुआ भी, वारेन एंडरसन ने अपनी बाकी की जिन्दगी अमेरिका में आराम से बिताई,भारत सरकार हमेशा की तरह किसी को सजा दिलवा पाना तो दूर,ठीक से मुकदमा तक नहीं कायम कर पाई प्रश्न उठता है कि आखिर मदर टेरेसा थीं क्या...???
✍️ भगत जी