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. ॐ श्री परमात्मने नमः

श्री गणेशाय नम:

राधे कृष्ण

. गीता मानव मात्र का धर्मशास्त्र है
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. श्री कृष्ण कालीन महर्षि वेदव्यास से पूर्व कोई भी शास्त्र पुस्तक के रूप में उपलब्ध नहीं था। श्रुतज्ञान की परंपरा को लेखन में परिवर्तित करते हुए उन्होंने चार वेद, ब्रह्मसूत्र, महाभारत ( जिसका एक अंश श्रीमद्भभागवतगीता है) जैसे ग्रन्थों में पूर्वसंचित भौतिक एवं आध्यात्मिक ज्ञानराशि को संकलित कर अंत में स्वयं ही निर्णय दिया कि -

गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यै: शास्त्रसंग्रहै:।
या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्मादिनि:सृता।।
( म०भा०, भीष्मपर्व अ० ४३/१ )

गीता भली प्रकार मनन करके हृदय मे धारण करने योग्य है, जो पद्मनाभ भगवान के श्रीमुख से नि:सृत वाणी है; फिर अन्य शास्त्रों के संग्रह की क्या आवश्यकता है? मानव-सृष्टि के आदि में भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमुख से नि:सृत अविनाशी योग अर्थात श्रीमद्भागवद्गीता, जिसकी विस्तृत व्याख्या वेद और उपनिषद हैं, विस्मृति आ जाने पर उसी आदिशास्त्र को भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन के प्रति पुन: प्रकाशित किया, जिसकी यथावत व्याख्या ही यथार्थ गीता है।

गीता का सारांश इस श्लोक से प्रकट होता है -

एकं शास्त्रं देवकीपुत्र गीतम्
एको देवो देवकीपुत्र एव।

एको मंत्रस्तस्य नामानि यानी
कर्माप्येकं तस्य देवस्य सेवा।।
-( गीता-महात्म्य )

अर्थात् एक ही शास्त्र है जो देवकीपुत्र भगवान ने श्री मुख से गायन किया - गीता। एक ही प्राप्त करने योग्य देव है। उस गायन में जो सत्य बताया - आत्मा! सिवाय के कुछ भी शाश्वत नहीं है। उस गायन में महायोगेश्वर ने क्या जपने के लिए कहा? ॐ। अर्जुन! ओम् अक्षय परमात्मा का नाम है, उसका जप कर और मेरा ध्यान धर। एक ही कर्म है गीता में वर्णित परमदेव एक परमात्मा की सेवा। उन्हें श्रद्धा से अपने हृदय मे धारण करें। अस्तु, आरम्भ से ही गीता आपका शास्त्र रहा है। भगवान श्रीकृष्ण के हजारों वर्ष पश्चात् परवर्ती जिन महापुरुषों ने एक ईश्वर को सत्य बताया, गीता के ही संदेशवाहक हैं। ईश्वर से ही लौकिक एवं परालौकिक सुखों की कामना, ईश्वर से डरना, अन्य किसी को ईश्वर न मानना- यहाँ तक तो सभी महापुरुषों ने बताया; किन्तु ईश्वरीय साधना, ईश्वर तक की दूरी तय करना - यह केवल गीता मे ही सांगोपांग क्रमबद्ध सुरक्षित है। गीता से सुख-शान्ति तो मिलती ही है, यह अक्षय अनामय पद भी देती है।

यद्यपि विश्व में सर्वत्र गीता का समादर है फिर भी यह किसी मज़हब या सम्प्रदाय का साहित्य नहीं बन सकी; क्यों कि सम्प्रदाय किसी न किसी रूढ़ि से जकड़े हैं। भारत में प्रकट हुइ गीता, विश्व-मनीशा की धरोहर है, अत: इसे राष्ट्रीय शास्त्र का नाम न देकर ऊँच-नीच, भेदभाव तथा कलह परम्परा से पीड़ित विश्व की सम्पूर्ण जनता को शान्ति देने का प्रयास करें।
-- क्रमशः --

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हरी ॐ तत्सत् हरि:।

ॐ गुं गुरुवे नम:

राधे राधे राधे, बरसाने वाली राधे, तेरी सदा हि जय हो माते।

शुभ हो दिन रात सभी के।