अभी तक योगेश्वर श्रीकृष्ण ने किसी महापुरुष द्वारा योग का आरम्भ, उसमें आने वाले व्यवधान, और उनसे पार पाने का रास्ता बताया | इस पर अर्जुन ने पश्न किया-
अर्जुन उवाच
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अपरं भवतो जन्म परं जन्म विवस्वतः।
कथमेतद्विजानीयां त्वमादौ प्रोक्तवानिति॥
. ( श्रीमद्भगवद्गीता ४/४ )
हिन्दी अनुवाद : -
अर्जुन बोले- आपका जन्म तो अर्वाचीन-अभी हाल का है और सूर्य का जन्म बहुत पुराना है अर्थात कल्प के आदि में हो चुका था। तब मैं इस बात को कैसे समूझँ कि आप ही ने कल्प के आदि में सूर्य से यह योग कहा था ?
व्याख्या : -
आप का जन्म तो अपरम्पार - अभी हुआ है जबकि हममें सुरा का संचार तो सृष्टि के प्रारम्भ से ही है | फिर मै कैसे मान लूं कि आप ही ने इस योग को तभी आदित्य से कहा था?
हरिॐ तत्सत हरि:
ॐ गुं गुरुवे नम:
राधे राधे राधे, बरसाने वाली राधे, तेरी सदा हि जय हो माते |