अर्जुन के प्रश्नों का उत्तर देते हुए श्रीकृष्ण बोले-
श्रीभगवानुवाच
बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन।
तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परन्तप॥
. ( श्रीमद्भागवत गीता अ० ४-५ )
हिन्दी अनुवाद -
श्री भगवान बोले- हे परंतप अर्जुन! मेरे और तेरे बहुत से जन्म हो चुके हैं। उन सबको तू नहीं जानता, किन्तु मैं जानता हूँ |
व्याख्या-
अर्जुन! मेरे और तेरे बहुत से जन्म हो चुके हैं | हे परंतप! उन सबको तू नहीं जानता; किन्तु मै जानता हूँ | साधक नहीं जानता, स्वरूपस्थ महापुरुष जानता है, अव्यक्त की स्थिति वाला जानता है | मै अजन्मा, अव्यक्त, शाश्वत होते हुए भी शारीरिक आधार वाला हूँ |
अवधू जीवत में कर आसान |
मुए मुक्ति गुरु कहे स्वार्थी, झूठा दे विश्वास ||
शरीर के रहते ही उस परमतत्व मे प्रवेश पाया जाता है | लेशमात्र भी कमी है, तो फिर जन्म लेना पड़ता है | अभी तक अर्जुन, श्रीकृष्ण को अपनी तरह देहधारी समझता है | वह अंतरंग प्रश्न रखता है- क्या आपका जन्म भी वैसा ही है जैसा सबका है? क्या आप भी शरीर-धारियों की तरह ही पैदा होते हैं? उत्तर अगले सत्र में मित्रों |