पैगम्बर इब्राहीम मुसलमान ही नहीं थे.तब कैसे मुसलमानों ने उन्हें अपना पैगम्बर और पूर्वज बता दिया.क्योकि उस समय इस्लाम का जन्म ही नहीं हुआ था.
इस्लाम,ईसाई,यहूदी धर्म शुरू होने के पहले उनका जन्म हुआ था.
इब्राहीम ने कभी नमाज नहीं पढ़ी.
इब्राहीम के ऊपर कुरान नहीं उतरी थी.
इब्राहीम के समय एक भी मस्जिद नहीं थी.
इब्राहीम के नाम पर पत्थर मारना,कुर्बानी सिर्फ कुरान में लिखा है.3000 साल के किसी भी किताब में नहीं लिखा है.
कुरान के पहले ईसाई,यहूदी किताबो में इब्राहीम का नाम तो है किन्तु कुर्बानी,पत्थर मारना नहीं लिखा है इसलिए ईसाई ,यहूदी ऐसा नहीं करते है.
कुर्बानी और हज में पत्थर मारने की सारी कहानी फर्जी है....
यह तथ्य पढ़ने को नही मिलता कि समय इब्राहीम की परंपरा के अनुसार कुरबानी करने का रिवाज हो। भोजन के लिए मांसाहार होता था, यहां तक तो ठीक है, लेकिन आज जिस तरह से हज यात्रा संपन्न हो जाने के बाद किसी पशु की कुरबानी होती है, इसका विवरण नही मिलता। इब्राहीम और इस्माइल की इस संपूर्ण घटना का विवरण केवल कुरान में उपलब्ध है।
इसलिए इस्माइल से हजरत मोहम्मद साहब के बीच 2100 साल की अवधि में कुरबानी होती थी या नही, इसका कोई दस्तावेज नही मिलता। वास्तविकता तो यह है कि हज यात्रा और उसकी समस्त क्रियाओं का स्वरूप केवल इसलाम ने ही प्रदान किया है और उसके सबूत के रूप में मात्र कुरान ही एकमात्र दस्तावेज है।
इब्राहीम के पुत्र इस्माइल का जन्म उनकी नौकरानी हाजरा से हुआ जब 86 साल के थे.
बाइबिल की कहानी में इब्राहीम को इस्लाम का पैगम्बर नहीं लिखा है.जबकि बाइबिल कुरान से पहले की है...