किसी बड़े पद पर काबिज़ होना और इतिहास के पन्नों में स्थान प्राप्त करना दो अलग-अलग बातें हैं। पटेल प्रधानमंत्री नहीं बन पाए थे पर यह उनकी प्रसिद्धि में बाधा नहीं बना। जब तक भारत का इतिहास पढ़ाया जायेगा, पटेल का नाम बड़ी इज़्ज़त के साथ लिया जायेगा।
इसी तरह आडवाणी जी ने भी इतिहास में अपना नाम दर्ज करा लिया है और उनकी चर्चा बराबर होगी। यह सिर्फ और सिर्फ आडवाणी जी की ही सोच थी और दूरदृष्टि थी कि उन्होंने भाजपा जैसी एक सीमित प्रभाव क्षेत्र वाली पार्टी को न ही सिर्फ राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बना दिया बल्कि सत्ता में बिठा दिया। वाजपेयी जी के नेतृत्व में जो भाजपा सरकार बनी थी उसका सारा श्रेय आडवाणी जी को जाता है जब पार्टी के सबसे बड़े और सबसे ज़्यादा स्वीकार्य नेता होने के बावजूद उन्होंने अध्यक्ष के तौर पर यह घोषणा कर दी कि भाजपा के सत्ता में आने की स्थिति में अटल जी प्रधानमंत्री बनेंगे। क्योंकि उन्हें पता था कि पार्टी सिर्फ अपने दम पर सत्ता में नहीं आ सकती, और ऐसे में अन्य दल उनके नाम पर नहीं बल्कि वाजपेयी जी के नाम पर आ जायेंगे। उन्होंने स्वयं से ज़्यादा पार्टी को महत्व दिया।
इसके अलावा उन्होंने दूसरी पीढ़ी के भाजपा नेताओं की फ़ौज खड़ी की -प्रमोद महाजन, जेटली, सुषमा, वैंकेया, उमा, शिवराज, रमन सिंह, और स्वयं नरेंद्र मोदी - all of them were handpicked and groomed by LKA. असली नेता वही होता है जो अपने कार्यकाल में ही अपने जैसे या अपने से बेहतर नेताओं को तैयार कर दे ताकि उसके जाने के बाद शून्य की स्थिति उत्पन्न न हो जाय।
Bottomline ये है कि कुछ लोगों के भाग्य में पद नहीं होता इसके बावजूद वो इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ जाते हैं। देवेगौड़ा, गुजराल ने प्रधानमंत्री पद तो हासिल कर लिया पर इसके बावजूद इतिहास के पन्नों में उनका नाम footnotes में ही दर्ज होगा।
आडवाणी जी की कल्पना मैंने राष्ट्रपति के पद पर कभी नहीं की। मैं 2009 में उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में ज़रूर देखना चाहता था। मैंने इसके लिए अपना तन, मन, धन भी चुनाव प्रचार में अर्पित किया। पर अफ़सोस ऐसा न हो पाया।
जहाँ तक इस बार राष्ट्रपति बनने की बात है, मैं भी नहीं चाहता था कि वह बनें क्योंकि वो 90 वर्ष के हो चुके हैं।माना कि वो अभी स्वस्थ हैं पर कब उम्र का प्रभाव उनकी मानसिक फिटनेस पर अचानक दिखने लगे, कुछ नहीं कहा जा सकता। 92 या 93 की उम्र में शायद ही किसी व्यक्ति को आपने मानसिक रूप से पूर्णतः एक्टिव देखा होगा। रिस्क नहीं लिया जा सकता था।
इसके अलावा ऐसे समय में जब सारे विपक्षी दल मोदी को 2019 में हराने के लिए आपसी विचार-भेद भुला कर महागठबंधन बना रहे हों, मोदी को भी अपना वोट बेस बढ़ाने के लिए राजनीतिक दाँव चलने होंगे। रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनाये जाने से भाजपा को वो हासिल होगा जो आडवाणी जी को बनाये जाने से नहीं होता। राजनीति को राजनीति की तरह करना चाहिए, इमोशन के आधार पर नहीं, वरना आप पार्टी का नुकसान करेंगे। यह बात आडवाणी जी से बेहतर कौन जान सकता है जिन्होंने पार्टी को सत्ता में लाने के लिए स्वयं को पीछे कर के वाजपेयी जी को आगे कर दिया था।
पर राष्ट्रपति नहीं बन पाने से संघ और भाजपा के कार्यकर्ताओं में आडवाणी जी की इज़्ज़त कम नहीं हो जाती। मुझे लगता है श्री कोविंद को राष्ट्रपति बनाये जाने में स्वयं आडवाणी जी की सहमति होगी।
भारत की राजनीति में कांग्रेस का एकाधिकार ख़त्म करने और भारतीय जनता पार्टी को एक alternative के रूप में स्थापित करने के लिए आडवाणी जी का नाम इतिहास में हमेशा लिया जाता रहेगा। आज यदि भाजपा और नरेंद्र मोदी देश की राजनीति पर पूरी तरह से हावी हैं तो उसकी नींव आडवाणी जी ने ही रखी थी।
और जहाँ तक ख़ुशी मिलने की बात है, आडवाणी जी को राष्ट्रपति बनने से ज़्यादा ख़ुशी इस बात से होगी कि उनके जीवन काल में ही अयोध्या में रामजन्म भूमि पर भव्य राम मंदिर का निर्माण हो और उसका उद्घाटन स्वयं आडवाणी जी अपने कर-कमलों से करें।