भारत में इस नाम के तीन प्रमुख ज्योतिर्लिंग हैं।हिमांचल में बैद्यनाथ पपरोला,झारखण्ड में देवघर वैद्यनाथ धाम एवं महाराष्ट्र में परली बैद्यनाथ।देखना यह है कि वह कौन सा शिवलिंग है,जिसका वर्णन शिव पुराण के अनुसार द्वादश ज्योतिर्लिंग में है।शिव पुराण में"वैद्यनाथं चिताभूमौ"।परली मन्दिर की चट्टान के निचले भाग की समतल भूमि पर कुछ समय पहले चिता भूमि थी,तथा इसकी मान्यता थी की यहाँ जिसकी चिता जलती है!उसका मोक्ष हो जाता है।बहुत दूर दूर से शव यहाँ लाये जाते थे।आबादी बढने से समतल भूमि पर भवन निर्माण हो गये हैं।इस कारण चट्टान के तीन तरफ चिता वर्जित कर केवल एक तरफ चिता जलने की अनुमति है और बहुत दूर दूर से शव आते हैं।स्थानीय लोगों ने अब चिता भूमि कहना बन्द कर दिया है तथा यह शब्द लुप्तप्राय है।बाकी दोनो स्थानों के चतुर्दिक कोई चिता भूमि होने के प्रमाण नहीं हैं।पुराणों में"परल्यां वैद्यनाथं च"वर्णन मिलता है।जिससे परली में ही ज्योतिर्लिंग की पुष्टि होती है।
दूसरा विचारणीय विन्दु रावण के कैलाश से लंका आवागमन मार्ग का है।ग्रन्थों के अध्ययन से पता चलता है कि रावण का कैलाश आवागमन का मार्ग सर्वदा पश्चिम भारत से रहा है।कर्नाटक में गोकर्ण,हम्मी(किष्किन्धा),महाराष्ट्र मेंनासिक,पंचवटी एवँं परली वैद्यनाथ एवं उत्तर प्रदेश में गोला गोकर्ण नाथ की स्थिति रावण का मार्ग इंगित करते हैं।इन्हीं स्थानों से रावण के जाने की जानकारी मिलती है।कैलाश से शिवलिंग लाते समय रावण के गोकर्ण में रुकने की कथा गोकर्ण के प्रसंग में वर्णित है।सीता हरण कर रावण जब आकाश मार्ग से जा रहा था तो सीता ने अपना चिन्ह किष्किंधा(वर्तमान हम्पी) में गिराया था।लक्ष्मण जी ने नासिक में सूर्पणखा की नासिका काटी थी।यहीं से सीता हरण पंचवटी से हुआ था।रावण द्वारा प्रतिष्ठित चंद्रभाल शिवलिंग गोला गोकर्णनाथ में है।
स्पष्ट है की रावण के आवागमन का मार्ग पश्चिम भारत से ही रहा है।शीघ्र लंका पहुंचने के लिये जब रावण पश्चिमी भारत मार्ग से लंका जा रहा था तो उसे परली में रुकना पडा,जहाँ छल से भगवान ने ज्योतिर्लिंग को भूमि पर रख दिया,तथा यह ज्योतिर्लिंग वैद्यनाथ के नाम से स्थापित हुआ।
कैलाश लंका आकाश मार्ग में वैद्यनाथ पपरोला इतना अधिक पश्चिम है कि उतना घूमकर जाना तर्कसंगत नहीं लगता।झारखंड मे कोई ऐसा चिन्ह नहीं मिलता कि रावण कभी इतना उल्टा घूमकर गया।
शिव पुराण को॰रु॰स॰ अध्याय २ में जहाँ बिहार(वर्तमान झारखण्ड) का वर्णन है,वही श्रृंगेश्वर नाथ वैद्यनाथ का वर्णन है,यह प्रसिद्ध शिवलिङ्गों में है परन्तु यह द्वादश ज्योतिर्लिंग में नहीं माने जाते।(यह पंक्ति पं.कृष्ण कुमार जी के ग्रन्थ से साभार,)
तथ्य आपके सामने है।मैं "वैद्यनाथं चिता भूमौ।" "परल्यां वैद्यनाथं च" के अनुसार परली वैद्यनाथ को ज्योतिर्लिंग मानता हूँ।
!! जय श्री महादेव !!
माया को चाहने वाला बिखर जाता है और
महादेव को चाहने वाला निखर जाता है
!! जय श्री महादेव !!