पड़ लेता मन के भाव सदा
भर देता मन के घाव सदा
दुखों के अंधियारों में
अंधेरों के गलियारों में
मन डूबा हो अंधियारों में
ले आए वो उजियारों में
मन की बात समझ जाए
आंखो की भाषा पड़ पाए
भावों को छू कर के वो
आशा का दामन पकड़ाए
मौन की भाषा भी समझे
शब्दों के मन को छू लेता
अपना साया भी साथ ना हो
मीत सा सदा संग रहता
कितनी ही विकट समस्या हो
कितनी हो कठिन परिस्थितियां
मेरे हृदय की पीड़ा पी लेता
मेरे दुख को भी जी लेता
मेरे हर सुख में इतराता है
ऐसा होता है मीत
जो मित्र कहलाता है