पृथ्वी पर रहने वाले असंख्य प्राणियों की तरह हे प्रभो, क्या आप भी इस जमीन पर ही रेंगने वाले तुच्छ जीव बने रहना चाहते हो?
क्या आप को अपनी इस कमजोरी पर अफसोस नहीं है?
आप जानते ही हैं कि एक छोटा सा चिड़िया का बच्चा भी थोड़ी सी ताकत आने पर कुछ ही दिनों में घोसले को छोड़कर मुक्त आकाश में उड़ने लगता है।
इसी तरह हमारे शास्त्रों में आता है कि एक आठ साल के बालक में भी इतना ज्ञान होता है कि अगर वह चाहे, तो अपनी चैतन्य-आत्मा को जान सकता है, पहचान सकता है और उसे प्राप्त कर चैतन्य-परमात्मा बन सकता है।
हे प्रभो, क्या आप अपने आने वाले जन्मों में फिर से धरती पर ही रेंगना चाहोगे, अगर नहीं, तो अब तो उठ खड़े होओ।
आप के वर्तमान ज्ञान में ही इतनी ताकत है कि आप जब चाहो तो अपने शरीर रूपी घोसले से बाहर कूद सकते हो,
फिर आप भी अपने ज्ञाता-द्रष्टा रूपी दोनों पंख फैलाकर निर्विकल्प भाव से सहजानन्दी शुद्ध स्वरूप को लक्ष्य में लेकर अनन्त गुणों के मुक्त आकाश में अनन्त काल के लिए सुखपूर्वक विचरण कर सकते हो।