जंगल में एक दिन तेजी से तूफान आया । उसी समय गजराज अपने प्राणों को बचाने के लिये भागने लगा। वह गजराज दलदल में फंस गया। धीरे —धीरे आंधी—तूफान थमा। हाथी ने देखा कि मैं तो कीचड़ में पंâस गया हूँ । उसने निकलने के बहुत प्रयास किये परन्तु वह कीचड़ से बाहर नहीं निकल सका। थोड़ी देर में जंगल के शेर, चीते, लकड़बग्घे आदि हिंसक पशुओं को पता चला कि आज गजराज कीचड़ में पंâसा हुआ है। सब मौके की तलाश में गजराज के इर्द—गर्द मंडराने लगे, परन्तु सबको अपने मरने का भी डर था क्योंकि सबको पता था कि गजराज ने जब जंगल के राजा शेर को अपनी सूंड में लपेटकर पेंâका था तब वह जंगल का राजा उठ भी नहीं सका। उसकी सूंड जिस तरफ घूम जाती थी उसी तरफ हलचल हो जाती थी। फिर पीछे से आक्रमण करने की चाल के सामने असहाय गजराज कुछ नहीं कर सका। धीरे—धीरे खूनाखून होता गजराज अंत में मौत की ओर खिसकने लगा परन्तु गजराज के मन में बदले की भावना आ गई। इससे वह मरकर विंध्याचल के जंगल में फिर भारी—भरकम हाथी बना। एक बार इस जंगल में आग लग गई । तब गजराज ने अपनी सूंड से आसपास के झाड़ उखाड़कर मैदान बना लिया। थोड़ी ही देर में आग से बचने के लिये बहुत सारे पशु देखते—देखते इकट्ठा हो गये। गजराज को तभी पैर में खुजली चली। जैसे ही गजराज ने पैर को खुजलाने के लिये उठाया, तभी एक खरगोश का बच्चा अपनी जान बचाने वहीं दुबककर पैर के नींचे बैठ गया। गजराज ने पैर नीचे रखना चाहा तो खरगोश के बच्चे को नीचे देख गजराज ने पैर नीचे नहीं रखा और ऊपर उठाये रखा। कुछ समय बाद आग शांत हुई। धीरे—धीरे सभी पशु चले गये । वह खरगोश भी चला गया लेकिन बहुत देर तक पैर अकड़ गया। जैसे—तैसे गजराज ने पैर नीचे रखने का प्रयास किया किन्तु गजराज लड़खड़ाकर गिर गया। और उसके प्राण — पखेरु बड़े ही शांत भाव से उड़ गये। गजराज मरकर राजा श्रेणिक का पुत्र मेघकुमार हुआ। भगवान महावीर के पावनचरण पाकर मेघकुमार ने मोक्ष प्राप्त कर लिया। शिक्षा— इससे यह शिक्षा मिलती है कि हमें सदैव दया भाव रखना चाहिए।