आज बचपन याद आ गया. इस तस्वीर को देखकर.
घर में मिट्टी वाला चूल्हा हुआ करता था. हम रात को खाना बनाने के समय माँ के पास ही बैठे रहते. माँ से अक्सर जिद करते थे लिट्टी बनाने की. वह जब कहती कि ज्यादा समय लगेगा तो हमारा तर्क होता कि बस थोड़े ज्यादा आटे की जरूरत होगी... एक ही बना दो न..! फिर धीमी आंच पर इसे बनाया जाता..!
चिड़िया बनवाते...
और फिर हमारी नौटंकी अपने आखिरी दौर यानी हलवे पर पहुंचती इससे पहले ही पिताजी के गेट खोलने की आवाज़ आती...