जैसे बाँसों के वृक्षों से, छाया नहीं मिलती।
स्त्री-पुत्रादिक से सुख की त्यों कल्पना झूठी।
कितने खोजे देखो भौतिक विज्ञान ने साधन ?
पर हो सके उनसे कभी क्या शांति का वेदन।
बाहर की दुनिया में नहिं भवि होड़ लगाओ।
समझो चेतो आराधना के मार्ग में आओ।।
"ब्र. रवीन्द्रजी आत्मन् "
—
जय जिनेन्द्र
आत्मन् ! निराशा अंत में बाहर से मिलेगी।
पछताने पर भी ये घड़ी नहिं हाथ लगेगी।।
पुण्योदय भी क्षणभंगुर है मत लखकर ललचाओ।
पापोदय की प्रतिकूलताओं से न घबराओ।
दुनिया की बातों में आकर नहिं चित्त भ्रमाना।
नित तत्वों के अभ्यास में ही मन को लगाना।
नहीं है विवाद का निर्णय का मार्ग है ।
अाराधना का मार्ग ही स्वाधीनता का मार्ग है।