एक डंडे पर कपड़ा लटका रखा है, उसको झंडा कहते हो। उसको किसी ने झुका दिया, इसमें युद्ध हो सकता है। कपड़े का टुकड़ा है। इसमें लाखों लोग मर सकते हैं। तुमने एक मंदिर बना रखा है, वहां एक भगवान की प्रतिमा तुम बाजार से खरीद लाये हो, उसे स्थापित कर दी, किसी ने उसको फोड़ दिया, दंगे हो जायेंगे। छोटे बच्चे भी इतने बचकाने नहीं। उनकी गड्डी तोड़ दो तो थोड़ा शोरगुल करेंगे, फिर भूल जायेंगे। लेकिन तुम्हारे दंगे जीवन भर चलेंगे। जन्मों-जन्मों चलेंगे। पीढ़ी दर पीढ़ी दोहराये जायेंगे, क्योंकि किसी ने मंदिर तोड़ दिया है।
परमात्मा का कोई मंदिर तोड़ा जा सकता है? यह सारा अस्तित्व उसका मंदिर है। तुम्हारे मंदिर तोड़े जा सकते हैं, जो तुमने बनाये हैं। क्योंकि वे परमात्मा के मंदिर नहीं हैं। जो तोड़ा जा सकता है उससे ही सिद्ध हो गया कि वह परमात्मा का नहीं है। परमात्मा का तो कुछ भी तोड़ा नहीं जा सकता। जो बनाया जा सकता है वह तोड़ा जा सकता है। बनाने में ही तुमने भूल की थी, इसीलिए तो तोड़ दिया गया है।
कोई मस्जिद में आग लगा देता है, और मुहम्मद परेशान रहे जिंदगी भर समझाने में कि परमात्मा का कोई आवास नहीं है, वह सभी जगह है। उसका कोई नाम नहीं है, कोई रूप नहीं है, कोई मूर्ति नहीं है। लेकिन मस्जिद, मंदिर से भिन्न नहीं है। वहां मूर्ति तो नहीं है, लेकिन मस्जिद ही मूर्ति हो गई। और पागलपन हमारा ऐसा है कि अगर तुम मूर्ति बनाओ तो तुम काफिर हो, पापी हो, अज्ञानी हो। यह बात यहां तक पहुंच गई कि अगर मुहम्मद का कोई चित्र बना ले, तो उसकी जान खतरे में। मुहम्मद का कोई चित्र छाप दे तो उपद्रव हो जायेंगे। क्योंकि मूर्ति नहीं है कोई।