ARVIND Ashiwal's Album: Wall Photos

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साभार:-काव्य रचनाकार श्री ए.के.शर्मा .....

रिटायर्ड आदमी को सभी फालतू समझते हैं
कहते हैं ये
छोटी छोटी बातों में बार बार बमकते हैं .
वे सोचते हैं कि
बात करो तो अपनी ही हाँकते रहते हैं
मैंने ये किया वो किया यही फांकते रहते हैं
और पत्नी
पत्नी कहती है
दिन भर कुर्सी तोड़ते हो
मोबाइल में आंखे फोड़ते हो
जाओ बाजार से कुछ सामान ले आओ -----
बहु कहती है पापा मुन्ना रो रहा है
पहले उसे घुमाने ले जाओ , चाय बनाने में भी वह शर्त लगाती है
मुन्ना को घुमा लाऊँ ,तब चाय पिलाती है ।
बंधू रिटायर क्या हुआ जैसे मेरी सरकार गिर गई ,
सात जन्मों की साथी पत्नी
रूलिंग पार्टी से मिल गई ।

टीवी देखता हूँ तो बच्चे रिमोट छीन लेते हैं
कार्टून चैनल देखकर, मुझे आस्था लगा देते है
' हम आस्था लायक ही रह गये हैं 'ये कैसे जान लेते हैं
एक पैर कब्र में गया , ये कैसे मान लेते हैं |

लेडीज जिमनास्टिक्स देखता हूँ तो लोग मुझे देखते हैं
जैसे कहते हों, ' बूढ़े हो गये मगर अब भी आँखें सेकते हैं '

एक दिन नाती पूछ रहा था
दादाजी आज के पेपर में कितने एड आये हैं ?
मेरी अनभिज्ञता जताने पर बोला
मम्मी तो कहती है आप पेपर चाट जाते हैं
इतना भी नहीं मालूम ,
तो फिर सिर क्यों खपाते हैं ?

योगा करता हूँ तो कहते हैं
"मरने से तो ऐसे डरते हैं
जैसे दुनियाँ में किसी के बाप नहीं मरते हैं "

मैं कहता हूँ अरे भाई अभी तो रिटायर हुआ हूँ कुछ पेंशन तो खाने दो
बेटा कहता है " मूलधन तो ले ही लिया
अब ब्याज को जाने दो "

सोचता हूँ कि रिटायरमेन्ट के बाद ऐसा क्या हो जाता है
कि आफिस का बॉस घर में
जगह नहीं पाता है
उसके सलाह मसबरे एकाएक निरर्थक हो जाते हैं
उसके बोलने पर
क्यों घरवाले झल्लाते हैं
चाहता हूँ कहूँ
" घर का मुखिया न रहा , न सही ,
एक सम्मानित सदस्य तो रहने दो
न सुनना हो मत सुनो , मगर बात तो कहने दो
बोलने की आदत है धीेरे धीरे छूटेगी
स्वयं को कुछ समझने की धारणा धीरे धीरे टूटेगी |
कुछ समय के बाद मैं भी,
बालकनी में बैठा चुपचाप
सड़क की ओर देखूंगा
आती जाती भीड़ में वे कुछ चेहरे खोजूंगा
जो मुझे फालतू बैठा देखकर भी फालतू न समझें
हमेशा टें टें करने वाला पालतू न समझें |