ARVIND Ashiwal's Album: Wall Photos

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ढोल, गवांर,शुद्र ,पशु और नारी ।
सब ताड़न के अधिकारी।।
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यह सुंदरकांड की सुंदर चौपाई है जिसका अर्थ बहुत ही सुंदर है ,

*परन्तु अज्ञानतावश कई लोग यहाँ ताड़ना का अर्थ मारना , पीटना, या प्रताड़ित करने से लगाते है जो सर्वथा गलत है ।*

तुलसीदास जी का जन्म बाँदा जिले में हुआ था जो बुंदेलखंड में आता है । अतः बुंदेलखंड में *ताड़ना का अर्थ ध्यान रखने से है* ,जैसे "भैया मोरी गय्या न ताड़ रखियो " अर्थात भैया मेरी गाय का ध्यान रखना ।
अतः ताड़ना का गलत अर्थ लगाकर अपने धर्म के बारे में गलत धारणा न बनाये ।

*ढोल*: यानी बजाने वाला एक वाद्य उसे ताड़ना मतलब उसका ध्यान रखने से है यानी सुर सही निकले इसलिए उसे समय समय पर ध्यान दो ।

*गवांर* : चूंकि जिसमें बुद्धि का विकास व ज्ञान कम हो उसे हम गवार कहते , वह अपना कार्य चतुराई से नही कर सकता अतः उसका भी ध्यान रखना पड़ता है ।
*शुद्र*: यानी सेवक या तकनीकी कार्य करने वाला एक कर्मचारी जो धन के मामले में असहाय होता है उसकी आवश्यकता का ध्यान उसके मालिक को रखना चाहिए ऐसा कहा गया है । जबकि इस दोहे को आधार बनाकर कई लोग उसे भली बुरी सुनाते है उसे हीन समझते जो सर्वथा गलत है ।

*पश*ु : पशु का ध्यान रखना भी ताड़ना होता है न कि डंडे मारना ।

*नारी* : समाज में नारी अनेक रूप में होती है , माँ, बहन, पत्नी ,भाभी सभी रूपों में हमें अपना धर्म निभाते हुए उनकी अस्मिता की रक्षा करते हुए ध्यान रखने से ताड़ना का अर्थ है न कि स्त्री को दबाकर रखना ।

अतः ताड़ना और प्रताड़ना का अर्थ समझे बिना कई लोगों ने इस दोहे का गलत अर्थ समझ लिया है ।