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*16वीं सदी के संत रविदास की ये कविता क्या कोरोना वायरस के बारे में है?*

क्या आप इस बात पर यक़ीन करेंगे कि 16वीं शताब्दी के महान संत रविदास की एक कविता आज के माहौल में सच साबित होती दिख रही है? ये वो कविता है जिसमें चीन, अरब और इटली में कोहराम की बात की गई है। साथ ही लिखा है कि भारत एक बार फिर से विश्व गुरु के तौर पर उभरेगा। यह कविता ‘संत रविदास की पोथी’ नाम की किताब में कई साल से संकलित है। हालांकि इस बात की पुष्टि नहीं की जा सकती कि इसे संत रविदास ने ही लिखा है या बाद में किसी ने अपनी तरफ से जोड़ा है। हम इसकी प्रामाणिकता की पुष्टि नहीं कर सकते। फिलहाल ये कविता सोशल मीडिया पर खूब शेयर की जा रही है। आगे हम आपको इसके बारे में विस्तार से बताएँगे पहले आपको बता दें कि संत रविदास कौन थे। संत रविदास को रैदास नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म 1450 में काशी में हुआ था। कहा जाता है कि उनके पिता जूते बनाने का काम करते थे औऱ रविदास ने भी यही काम अपनाया। शुरू से ही वो ईश्वर की भक्ति में रमे रहते थे। यहाँ तक कि अपने काम को भी वो ईश्वर की आराधना की तरह करते थे। रविदास बहुत परोपकारी और दयालु थे और दूसरों की सहायता करना उनका स्वभाव था। लोककथाओं के अनुसार वो दाम लिए बिना काशी के संत-महात्माओं को अपने हाथों से बनाए जूते भेंट किया करते थे। बाद में उन्हें संत गुरु रविदास के नाम से जाना गया। वो बातों-बातों में ही ऐसी गूढ़ बातें बोल दिया करते थे कि हर कोई हैरान रह जाता था। उनके भजनों का जादू ऐसा था कि हर कोई उन्हें भाव-विह्वल होकर सुनता था। संत रविदास ऐसे पहले संत थे, जिन्होंने जाति-पाति तोड़कर सभी को प्रेम से रहने का संदेश दिया। “मन चंगा तो कठौती में गंगा” उन्होंने ही कहा था। मीराबाई उनकी शिष्या थीं।

क्या है संत रविदास की ‘भविष्यवाणी’
संत रविदास की कई कविताओं और भजनों का उनके शिष्यों से संकलन किया है। उन्हें ‘संत गुरु रविदास की पोथी’ के नाम से जाना जाता है। उन्होंने यूँ तो आने वाली दुनिया को लेकर कई भविष्यवाणियाँ कीं, जिनमें से कई काफ़ी हद तक सच साबित हुईं, लेकिन एक भविष्यवाणी ऐसी भी है जो आज के हालात में सही साबित होती दिख रही है। हालाँकि हम एक बार फिर से कह दें कि हम इसकी प्रमाणिकता की पुष्टि नहीं कर सकते। इस रचना में कहा गया है कि:

भारत में अवतारी होगा
जो अति विस्मयकारी होगा
ज्ञानी और विज्ञानी होगा
वो अदभुत सेनानी होगा
जीते जी कई बार मरेगा
छदम वेश में जो विचरेगा
देश बचाने के लिए होगा आह्वान
युग परिवर्तन के लिए चले प्रबल तूफ़ान
तीनों ओर से होगा हमला
देश के अंदर द्रोही घफ़ला
सभी तरफ़ कोहराम मचेगा
कैसे हिंदुस्तान बचेगा
नेता मंत्री और अधिकारी
जान बचाना होगा भारी
छोड़ मैदान सब भागेंगे
सब अपने अपने घर दुबकेंगे
जिन जिन भारत मात सताई
जिसने उसकी करी लुटाई
ढूंढ-ढूंढ कर बदला लेगा
सब हिसाब चुकता कर देगा
चीन अरब की धुरी बनेगी
विध्वंसक ताकत उभरेगी
घाटे में होगे ईसाई
इटली में कोहराम मचेगा
लंदन सागर में डूबेगा
युद्ध तीसरा प्रलयंकारी
जो होगा भारी संहारी
भारत होगा विश्व का नेता
दुनिया का कार्यालय होगा
भारत में न्यायालय होगा
तब सतयुग दर्शन आएगा
संत राज सुख बरसाएगा
सहस्त्र वर्ष तक सतयुग लागे
विश्व गुरु भारत बन जागे।

क्या वाक़ई संत रविदास की है कविता?
इस कविता का क्या मतलब है आज की परिस्थितियों में इसे समझना मुश्किल नहीं है। हमने जाँच की तो पाया कि संत रविदास के साहित्य में यह कविता काफ़ी सालों से है। हालाँकि बहुत सारे लोग इसे रविदास का लिखा हुआ नहीं मानते, क्योंकि इसकी भाषा काफ़ी हद तक खड़ी भाषा है, जबकि संत रविदास के समय तक ऐसी भाषा विकसित नहीं हुई थी। संत रविदास की परंपरा को मानने वाले कुछ साधक मानते हैं कि यह कविता रविदास की ही लिखी किसी कविता का सरल भाषा में रूपांतरण है। इनमें से सच्चाई जो भी हो लेकिन यह आश्चर्यजनक है कि ऐसी कविता कई साल से प्रचलित है। रैदासी परंपरा के लोग इससे पहले से परिचित भी हैं।